Monday 12 August 2019

कामयाबी...

कल तक जो लोग सीधे मुह बात नहीं करते थे
पीठ पीछे हमारी आलोचनाएं किया करते थे
लड़की होने का एहसास कराया करते थे
कैसे कहती उस वक़्त लड़की हूँ अपाहिज़ नहीं
मेरे माता पिता को तिरस्कृत किया करते थे
जैसे बेटी को शिक्षा देना कोई अपराध हो
पग पग पर जमाने ने कांटे बिछाए
हर मोड़ पर मुझे नीचा दिखाया
और आज लोगों के सुर ही बदल गए
सब को मुझमे अपनी बेटी नज़र आने लगी
मेरे माता पिता लोगों के लिए आदर्श हो गए
हर एक की ज़ुबान पर मेरा नाम ठहर सा गया
सच ही तो कहते हैं लोग
गरीबों से नज़दीक का रिश्ता भी छुपाते हैं लोग
और जो कामयाब हो जाओ तो दूर का रिश्ता भी बताते हैं लोग... 

ऐ विधाता...!

 ऐ विधाता...! ना जाने तू कैसे खेल खिलाता है...  किसी पे अपना सारा प्यार लुटाते हो, और किसी को जीवन भर तरसाते हो,  कोई लाखों की किस्मत का माल...