प्रथम प्यार का प्रथम पत्र
(अपनी प्रेयसी को लिखता एक प्रेमी)
प्रथम प्यार का, प्रथम पत्र है
लिखता, निज मृगनयनी को
उमड़ रहे, जो भाव ह्रदय में
अर्पित , प्रणय संगिनी को ,
इस आशा के साथ, कि समझें भाषा प्रेमालाप की !
प्रेयसि पहली बार लिख रहा , चिट्ठी तुमको प्यार की !
सुनो सजनी ये प्रणय गीत,
दिल से निकला और अक्षर बन कर जनम लिया
है , मेरे दिल के भावों ने !
दवे हुए जो बरसों से थे
लिखा उन्ही अंगारों ने !
शब्द नहीं लिखे हैं , इसमें भाषा ह्रदयोदगार की !
आशा है , सम्मान करोगी, भेंट हमारे प्यार की !
तुम्हें दृष्टि भर जिस दिन
देखा उन सतरंगी रंगों में !
भूल गया मैं रंग पुराने ,
जितने खिले थे यादों में !
उसी समय से पढनी सीखी , गीता अपने प्यार की !
प्रियतम पहली बार गा रहा, मधुर रागिनी प्यार की !
(अजनवी)
प्रेयसी का जवाब अपने प्रियतम के प्रथम पत्र का...
आज सुबह जब आँख खुली,
मनमयूरा मेरा नाच उठा,
हवाओं में महकी सी खुशबु थी,
जैसे लाई हो साथ संदेशा तेरा,
इतने में डाकिए ने आवाज़ लगाई,
तेरा लिखा वो पत्र मुझे थमाया,
प्रथम पत्र पाकर तेरा मैं ऐसी बौराई,
मानो प्रथम मिलन की बेला हो आई,
सुध बुध मैनें ऐसा खोया,
फ़िर तेरे आगोश में ख़ुद को पाया,
प्रियतम मेरा भी कुछ हाल है ऐसा,
जैसा तूने अपना बतलाया,
प्यासे से हैं ये होठ मेरे,
करने को बेताब तेरे होठों का रसपान,
जिस दिन से तुझको देखा है,
कुछ और नहीं है ख्वाहिश देखने की,
तेरे रंग मे ऐसे रंग गई संवरिया,
जैसे मीरा हो गई अपने श्याम की,
अब तो बस तुम आ जाओ प्रिये,
पढ़ा जा मुझको भी गीता अपने प्यार की...
#SwetaBarnwal