Wednesday 13 May 2020

Corona warriors...

ऐ Corona warriors...! 
तुम्हें है नमन हमारा... 

माना विपदा बड़ी है, 
सामने मौत खड़ी है, 
हर ओर सन्नाटा फैला है, 
सब घर में दुबके पड़े हैं, 
और तुम बाहर सड़कों पर खड़े हो, 
ताकि सुरक्षित रह सके ये देश हमारा, 
परिवारों से दूर अपने, 
मिलने को भी तरसते रहे, 
सरहद हो या पार सात समंदर, 
या हो कोई शैतान देश के अंदर, 
भारत माँ के प्रहरी तुम, 
हर दुश्मन से ही लड़ते हो, 
हर फर्ज़ को अंजाम देते हो, 
देश रक्षा के ख़ातिर मौत से भी लड जाते हो, 

ऐ Corona warriors...! 
तुम्हें है नमन हमारा... 

हम रहें सुरक्षित घर में अपने, 
तुम दिन रात परिश्रम करते हो, 
तभी तो शायद कहते हैं, 
तुमको विधाता का स्वरुप, 
Corona एक महामारी है, 
जानते हैं ये हम सभी, 
छूने से भी फैलती है, 
हो सकती है तुमको भी ये बीमारी, 
फ़िर भी तुमने हार ना मानी, 
दूर इसे भगाने की तुमने है मन में ठानी, 

ऐ Corona warriors...! 
तुम्हें है नमन हमारा... 

गंदगी से भी यह फैलेगी, 
नहीं किसी को ये छोड़ेगी, 
मित्र नहीं, ना सखा किसी की, 
ये बीमारी सबको ले डूबेगी, 
फ़िर भी तुम डटे रहे, 
सबका कचरा साफ़ करते रहे, 
अड़े रहे तुम अपने पथ पर, 
अपना कर्म करते रहे, 
रहें हम सलामत और देश सलामत, 
तुम साफ़ सफ़ाई करते रहे, 

ऐ Corona warriors...! 
तुम्हें है नमन हमारा... 

चिकित्सा मे माना हम बहुत पीछे थे, 
संसाधनों की कमी बड़ी थी, 
वक़्त था बहुत कम और लड़ाई बड़ी थी, 
नेता है हमारा सक्षम, 
उसके सामने टिक जाए भला 
Corona मे कहाँ दम, 
तुरंत कठोर फैसले लिए, 
सरहदों को सील किया 
देश को एकजुट किया, 
PPE kit, ventilator, robots, hydroxochloroquine, 
बड़े कम समय में सबका उत्पाद कराया, 
विज्ञान, चिकित्सा और प्रौद्योगिकी ने 
मिल कर नया इतिहास रचाया, 

ऐ Corona warriors...! 
तुम्हें है नमन हमारा... 

Lock-down मे जब सारा देश थम सा गया, 
तब भी तुम रुकी नहीं, 
सुस्ता रहें हैं जहां सब लोग घर में, 
तुम फ़िर भी थकी नहीं, 
सब के लिए होगी ये लंबी छुट्टी, 
पर तुम आज भी लगी हुई हो, 
कभी रसोई में, तो कभी बच्चों के देखभाल मे, 
कभी बाहर से आए सामान को धोने मे, 
कभी सबके कपड़ों की धुलाई, 
कभी घर की साफ़ सफ़ाई, 
एक छींक आ जाए किसी को, 
तुम्हारी जान निकल जाती है, 
लेकर काढ़ा और दवाई सेवा में लग जाती है, 
धन्य है घर की नारी, 
तेरे बिना अधूरी है हर लड़ाई और हर तैयारी, 
कोई माने या ना माने 
पर इस जंग में तूने भी है अहम भूमिका निभाई, 

ऐ Corona warriors...! 
तुम्हें है नमन हमारा... 

हर मुश्किल मे तुम सब डटे रहे, 
कोई तुझपर थूक रहा है 
तो कहीं तुझ पर पत्थरबाजी हुई, 
कोई नंगा नाच दिखा रहा है, 
तो कहीं तेरे साथ अश्लील हरकतें हुई, 
किसी ने हाथ काट डाले, 
किसी ने तुझपर तलवारों से वार किया, 
Corona के साथ साथ तू 
इन जुल्मों का भी शिकार हुआ, 
पर फ़िर भी तुम रुके नहीं झुके नहीं, 
ये जंग अभी भी जारी है, 
अपनी पूरी तैयारी है, 
ऐ Corona तुझको अब जाना होगा, 
हम सबने मिल कर ये ठानी है.

ऐ Corona warriors...! 
तुम्हें है नमन हमारा... 

#SwetaBarnwal 


माँ के प्यार की दौलत...

लाख हो भूखी माँ,
फ़िर भी कभी थकती नहीं,
देकर अपने मुह का निवाला 
सन्तान को पालती है माँ, 
सर्वस्व लुटा कर भी अपना,
आह नहीं भरती है माँ,
जाने क्यूँ उस माँ के आँखों से 
आंसू आज थमते नहीं, 
ख़ुद सो जाती है गीले मे,
सन्तान को हर मुश्किल से बचाती है माँ, 
हर लम्हे को वो खास बना देती है, 
अपनी ज़िंदगी का हर एहसास जिसके नाम कर देती है, 
क्यूँ दो पल का भी वक़्त नहीं दे पाता है वो, 
जब वृद्धावस्था में पहुंच जाती है माँ, 
चार चार संतानो को अकेले पाल लेती है माँ, 
फ़िर भी बुढ़ापे मे चार रोटी को तरस जाती है माँ, 
अरे किस्मत भी हार मान जाती है जब, 
माँ की दुआ एक नया रंग लाती है तब, 
माँ ज़मी पर जन्नत का एहसास है,
बच्चों के लिए जैसे वो खुला आकाश है, 
लौट जाती है हर बलाएँ टकरा कर,
सामना जो कभी माँ की दुआओं से होता है, 
थक कर सो जाती है रातें भी अक्सर,
माँ ने तो इन्तजार मे सदियाँ गुज़ारी है, 
मत देना कभी कोई कष्ट उस माँ को, 
जिसने तेरे लिए प्रसव का अनकहा दर्द झेला है, 
रखा है नौ महीने तुझको कोख में, 
जो तेरे इस दुनिया में आने की वज़ह बनी है, 
कई मन्नतें मांगी है उसने तेरे लिए, 
कई रातें गुज़ारी है जागती आंखों से उसने, 
लाख रही बिमार फ़िर भी, 
तेरे लिए किए हैं कई व्रत उसने, 
कितने ही चौखटों पे अपना सर है पटका,
तेरे लिए ख़ुद विधाता से भी लड गई माँ, 
उसे किसी और प्यार की जरूरत नहीं, 
जिसे माँ के प्यार की दौलत मिल गई... 

#SwetaBarnwal 

Sunday 3 May 2020

भारत माँ के चरणों में मैं नित शीश नवाया करती हूँ,
वीर शहीदों की गाथाओं को मैं रोज दुहराया करती हूँ...

#SwetaBarnwal


सोचा ना था...! कभी ऐसा दौर भी आएगा...

सोचा ना था...!
कभी ऐसा दौर भी आएगा...

स्कूल दफ्तर सारे बंद होंगे,
और छुट्टियों का आलम होगा,
सारे होंगे घर में फ़िर भी,
मिलना किसी से सम्भव ना होगा,
कोई घर में कैद होगा,
कोई घर से कोसों दूर होगा,
कोई घर में रहने को मजबूर होगा
कोई घर जाने को तरसेगा,
कोई सड़कों पर ज़िंदगी गुज़ारेगा,
कोई आंखों में रातें काटेगा...

सोचा ना था...!
कभी ऐसा दौर भी आएगा...

वक़्त होगा सबके पास,
पर मिलना होगा दुश्वार सभी का,
सडकें होंगी खाली मगर,
कहीं जाना भी यार ना होगा,
छोटी दूरी, मिलों का सफ़र
तय करना आसान ना होगा,
बच्चे होंगे घर में सारे,
फ़िर भी सूनी होंगी गलियां,
खाली होंगे खेल के मैदान सारे,
बच्चे भी अब चुपचाप रहेंगे,
दूर वालों को बुला ना पाएंगे,
और पास वालों से कभी मिल ना पाएंगे...

सोचा ना था...!
कभी ऐसा दौर भी आएगा...

उपेक्षित हो गए थे जो बुजुर्ग कभी,
उन्हें भरा पूरा परिवार मिलेगा,
मिल बैठेंगे सारे घर वाले,
रामायण और महाभारत का श्रवण होगा,
संस्कारों की गंगा बहेगी,
बच्चे अपनी संस्कृति से जुड़ेंगे,
छूट गया था जो अपनापन
इस पश्चिमीकरण की अंधी दौड़ में,
उन दुर्भावनाओं का भी
फ़िर से कुछ समाधान मिलेगा...

सोचा ना था...!
कभी ऐसा दौर भी आएगा...

चहचहायेंगे पंछी नभ मे,
उनको खुला आसमान मिलेगा,
मछली भी जल में तैरेगी ,
गंगा का जल फ़िर से अमृत होगा,
इंसान कैद होंगे चहारदीवारी मे,
और जीव जंतु स्वच्छंद विचरण करेंगे,
स्वच्छ होंगी हवाएं
प्रकृति भी उन्माद करेगी,
वातावरण में शांति दौड़ेगी,
खिलखिला उठेगी ये धरा,
साफ़ होगा आसमाँ
और सडकें होंगी खाली...

सोचा ना था...!
कभी ऐसा दौर भी आएगा...

समय गुजर रहा है
पर हर कोई चुपचाप खड़ा हैं,
कोई स्तब्ध है
तो कहीं कोई मौन पड़ा है,
तारीखें बदल रही हैं,
पर लम्हों का कोई हिसाब नहीं,
जिस ताकत के बल पर उन्मत्त था इंसान कभी,
आज उनसे ही मात खा रहा है,
चला था देने चुनौती विधाता को,
आज उसी के सहारे ज़िंदगी बचा रहा है,
जिस विज्ञान पर घमंड था उसे,
आज वो भी किसी काम ना आ रहा है...

सोचा ना था...!
कभी ऐसा दौर भी आएगा...

मॉल, सिनेमा, पार्क और होटल
सब पर होंगे ताले,
नहीं कहीं कोई चोरी होगी,
क्यूंकि घर में ही होंगे घर के रखवाले,
बंद हो जाएंगे सड़कों के हादसे,
क्यूंकि बंद होंगे सारे यातायात,
नहीं कोई बिमार होगा,
ना होगा हॉस्पिटल का मीटर चालू,
सादा जीवन होगा सबका,
खायेंगे सब चावल, दाल और आलू,
नहीं कोई चौपाटी होगी
ना कहीं कोई शादी और पार्टी,
ना रस्मों रिवाजों की भेंट चढ़ेगी
कहीं कोई बहु तो कहीं कोई बेटी...

सोचा ना था...!
कभी ऐसा दौर भी आएगा...

अब ना तो सोमवार आने का दुःख
और ना इतवार के चले जाने का ग़म,
ना कोई काम पे जाने का झंझट,
और ना ही किसी छुट्टी का इंतजार,
ना बच्चों का homework का बोझ,
ना ज्यादा कमाने का साधन,
ना ही खर्चने का कोई ज़रिया,
ना ही बॉस की खिच खिच की झल्लाहट,
ज़िंदगी में पहली बार
सबको इतनी लंबी इतवार मिली है,
पहली बार working mother को
अपना छोटा सा संसार मिला है...

सोचा ना था...!
कभी ऐसा दौर भी आएगा...

सालों बाद माँ बेटी ने मिलकर
छत पर लंबी दौड़ लगाई,
सालों बाद बेटी ने माँ का हाथ बटाया,
सालों बाद बेटा
बाप के गोद सर रख कर सोया,
सालों बाद पति पत्नी ने
एक दूजे को दिल का हाल सुनाया,
सालों बाद अमीरों ने
गरीबों के ज़ख्मों पर मलहम लगाया,
सालों बाद घर के सारे लोग
एकसाथ बैठ खाना खाए,
सालों बाद फ़िर से वो दौर आया,
जब लोगों को परिवार का महत्व समझ आया,
सालों बाद एक बार फिर से
हमने अपने संस्कारों को अपनाया...

सोचा ना था...!
कभी ऐसा दौर भी आएगा...



#SwetaBarnwal

किसी रंग से कोई बैर नहीं,
पर भगवा हमको प्यारा है...
हिन्दुत्व रक्षा के ख़ातिर,
हमने सर पर कफन बांधा है...
#SwetaBarnwal

बुजुर्गों का सम्मान... 🙏

बुढ़े माँ बाप या घर में कोई बुजुर्ग,
करते हैं रखवाली घर की जैसे कोई दुर्ग,
ये हैं घर की वो दिवार,
जो अपने आशीर्वाद से रोकते हैं हर वार,
संस्कारों की खान हैं ये,
बच्चों के लिए तो जैसे वरदान हैं ये,
एक मधुर स्मृति होते हैं ये
हमारे सुदृढ़ वर्तमान की नींव हैं ये,
अंधेरी ज़िंदगी में
टिमटिमाते लौ की भांति होते हैं ये,
प्यार इनका कवच
और इनका आशीर्वाद हमारा ढाल बन जाए,
जब कभी भी ज़िंदगी में
हमारे अनचाहा कोई मुकाम आ जाए,
ख़ुद को कभी जलाया,
तब जाकर आज यहां हमें पहुंचाया,
हर मुश्किलें सहीं हमारी ख़ातिर,
हम पर अपना सर्वस्व लुटाया,
ये हैं तो हम हैं,
वर्ना हम क्या और हमारा अस्तित्व क्या,
मत कष्ट पहुंचाना इनको तुम,
मत बनना इनके आंसुओं की वज़ह कभी,
ये हैं घर की वो दीवार
जो निरस्त कर दें काल का भी प्रहार,
ग़र आए जीवन में कोई तूफ़ान,
अपने अनुभव से कराएं नैया पार,
बड़े बूढ़ों का जो सम्मान करे,
उनके जीवन में सुख का संचार रहे...
आज हम पाश्चात्य सभ्यता मे ऐसे रंगे,
भूल के अपनी संकृति वृद्धों का अपमान करें,
बच्चों को आया के हाथ सौंप,
बुढ़े माँ बाप को तिरस्कृत कर वृद्धाश्रम पहुंचाये,
कैसे आए बच्चों मे संस्कार
जब हम ही संस्कार हीन हो जाएं,
जो आज दिखाओगे तुम बच्चों को,
कल तुम भी वही पाने के हकदार बनोगे,
ये वक़्त का पहिया है
चलता ही जाएगा,
जो तू आज बोयेगा,
वो ही कल पाएगा,
बीज बो कर नफ़रत की,
भला सम्मान कैसे पाएगा...
अब भी वक्त है
सम्भल जाओ तुम,
ग़र जीना चाहते हो बुढ़ापे मे शान से,
तो जीने दो अपने बुजुर्गों को सम्मान से...
आओ मिल कर आज ये संकल्प करें,
कभी ना हो घर में अपमान बुजुर्गों का,
मिट्टी के ये बर्तन नहीं
जो जब जी चाहा फोड़ दिया,
ये कोई जानवर भी नहीं,
जो रस्ते पर मरने छोड़ दिया,
लहू देकर अपना जिन्होंने पाला हमको,
भला क्यूँ तिरस्कृत हो बुढ़ापे मे वो,
वृद्धाश्रम मे वो नन्ही किलकारी को तरसे,
और घर में बच्चे संस्कारों को तरसे,
पैसों की चकाचौंध मे इंसानों ने रिश्ते खोए,
हर मुसीबत आई जब भी बुढ़ापा आया,
क्यूँ बिसराते जा रहे हैं बच्चे,
अपने ऊपर किए अहसान बुजुर्गों का,
बड़ी किस्मत से मिलता है यारों,
प्यार और आशीर्वाद बुजुर्गों का...


#SwetaBarnwal

Friday 1 May 2020

ओ कोरोना...!

ओ कोरोना...!
आख़िर तुझे मैं क्या नाम दूँ...
मौत कहूँ या जिंदगी का नाम दूँ,
अपनों से दूरी की वज़ह कहूँ
या ख़ुद को ख़ुद से मिलवाने का ज़रिया कहूँ,
दर्द कहूँ या कह दूँ दवा तुझे,
हवाएं दूषित थी,
ज़िंदगी अस्त व्यस्त थी,
जानवर और पंछी त्रस्त थे,
इंसान घमण्ड मे सारे मदमस्त थे,
गाड़ियों और फैक्ट्रियों का शोर था,
प्रदूषण चारो ओर था
अपराध घनघोर था,
सब के मन में चोर था
नदियों का पानी मैला था,
हवाओं में फैला ज़हर था,
रिश्तों में उसका दिखता असर था,
किसी के पास किसी के लिए ना वक़्त था,
हर कोई अपने मे ही बस व्यस्त था,
पैसों की दौड़ थी,
भागने की बस होड़ थी,
सब को ख़ुद पे गुमान था,
विज्ञान पर अभिमान था
जंगलों को काट रहा था,
नदियों की धारा मोड़ रहा था,
प्रकृति के साथ कर रहा खिलवाड़ था,
गगनचुंबी इमारतों से
आसमान को दे रहा चुनौती था,
इंसान को अपने सामर्थ्य पर
हो गया घमण्ड था,
तभी अचानक एक छोटा सा
Virus औचित्य मे आया,
जिसने ला कर रख दिया
सारी दुनिया को घुटनों पर,
दिखा दिया औकात इंसान को,
मौत का खौफ़ यूँ हर ओर छाया,
विज्ञान भी तब कुछ काम ना आया,
क़ैद करने चला था जो पूरे संसार को
कैद हो कर रह गया वो
अपने ही घर की चारदिवारी मे,
आज नदियां लहरा रही हैं,
पंछी चहचहा रहे हैं,
हवाओं में ताजगी है,
ज़िंदगी में सादगी है,
जीव जंतु मस्त है,
प्रकृति भी आज स्वस्थ है,
धरा आज ख़ुशहाल है,
सृष्टि भी आज निहाल है.
समझ नहीं आता
ओ कोरोना...!
आख़िर तुझे मैं क्या नाम दूँ...
तुझे ज़िंदगी कहूँ
या कोई मौत का पैगाम हो तुम,
कोई ख़ुशी हो
या संहार का संचार हो तुम,
सृष्टि का संतुलन हो
या महाकाल का काल हो तुम,
अपनों का विछोह हो
या अपनों का समावेश हो तुम,
कोई भ्रांति हो
या विश्व शांति का पैगाम हो तुम,
कोई रोग हो,
या इंसानी रोगों का उपचार हो तुम,
ओ कोरोना...!
आख़िर तुझे मैं क्या नाम दूँ...


#SwetaBarnwal


ऐ विधाता...!

 ऐ विधाता...! ना जाने तू कैसे खेल खिलाता है...  किसी पे अपना सारा प्यार लुटाते हो, और किसी को जीवन भर तरसाते हो,  कोई लाखों की किस्मत का माल...