पिता का अंतिम पत्र... अपनी प्यारी पुत्री के नाम
मेरी प्यारी बेटी,
कल तुम जब आंखें खोलेगी,
शायद तब तक मैं तुम सबसे
कोसों दूर जा चुका होऊंगा,
अपनी बाकी बची जिम्मेदारी
तेरे ही नाम किए मैं जाऊंगा
नहीं है अब मुझमे हिम्मत,
ना जीने की कोई आस बची है,
बहुत दिनों से रोग ग्रसित रहा
बिस्तर पर मृत जैसा पड़ा रहा,
माँ बहन भाई इन सबको
बस तेरे हवाले किए जा रहा,
जानता हूँ तू है अभी बहुत छोटी,
पर तु है सबसे हिम्मत वाली,
बेटी नहीं तू बेटा है मेरा,
इसका रहा सदा अभिमान मुझे,
तेरे हाथों की मेहंदी भी छूटी नहीं,
जानता हूँ सब, पर क्या करूँ
कुछ पल का ही मैं मेहमान हूँ,
गिनती के ही लम्हें है पास मेरे,
पर कहना है बहुत कुछ तुझसे,
बहनों का घर संसार बसाना,
सपनों का राजकुमार ढूंढ लाना,
कभी ना उनकी आँखों में आँसू आए,
हर हाल में तू ये फर्ज़ निभाना,
तेरा भाई अभी बहुत छोटा है,
इन हालातों के झंझावात से अंजान है,
उसके परों को उड़ना सिखलाना
दुनिया में उसे एक पहचान दिलाना,
तेरी माँ है बड़ी ही भोली,
बहुत खेले हैं हमने आँख मिचौली,
मधुर साथ रहा बरसों का अपना,
अब उसे भी छोड़ मुझे जाना होगा
तुझे बेटी होने का फर्ज़ निभाना होगा
जा रहा हूँ मैं कई अरमां दिल में ही लिए,
चाहता था एक बार मैं नाना बन जाऊँ,
बच्चों के साथ खेलूं कभी घोड़ा बन जाऊँ,
एक बार गोद में तेरे मुन्ने को लेता
काश फिर से मैं तेरा बचपन जी पाता
बाहों का उसको मैं झूला झूलाता
कभी लोरी सुना मैं उसे सुलाता
घोड़ा बन उसे मैं दुनिया की सैर कराता,
कांधे पर बिठा उसे आसमाँ तक ले जाता,
एक बार फिर से मैं भी बच्चा बन जाता...
चाहता था हर बेटी का कन्यादान करूँ,
अपने ही हाथों से उनको भी विदा करूं,
मन्नतों के बाद मिला था पुत्र का सुख,
पर हाए री अपनी किस्मत,
ये खुशी भी रह गई मेरी अधूरी
कर ना सका मैं कुछ भी उसके लिए,
दे ना पाया उसे भी खुला आकाश
मेरी प्यारी बेटी, है नाज़ मुझे तुझ पर,
करोगी तुम ही पूरे ख्वाब मेरे सारे...
बस अब और नहीं कुछ लिख पाऊंगा,
आँखें बोझिल सी हो रही है
साँसों का ताना टूट रहा है
तन का पंछी हो रहा बेकाबू,
सब छोड़ अब उड़ने को तैयार है
ख़ुश रहना तुम सब, मिल कर रहना साथ
भले ही तन से दूर हो रहा मैं,
मन से रहूंगा सदा तुम सबके पास...
#SwetaBarnwal