नई नवेली दुल्हन आशा अपने दिल में कई सारे अरमान लिए अपने पति संग ससुराल की दहलीज पे पांव रखी. ससुराल में सास, ससुर, ननद और देवर और खुब प्यार करने वाले पति, बस एक प्यारा सा परिवार. पति पत्नी दोनों ही प्राइवेट फर्म मे काम करते थे. सुबह उठते ही घर के कामों को जल्दी जल्दी निपटा कर सभी के नाश्ते और खाने का प्रबंध कर पति के साथ दफ्तर के लिए निकल जाती. पूरे दिन के भाग दौड़ के बाद आशा काफी थक सी जाती थी. घर आने के बाद किसी और काम की हिम्मत नहीं बचती थी उसमें. बावजूद घर में सबका ख्याल रखती थी. घर के कामों में सिवाय उसके पति राजेश के किसी और ने ना उसकी मदद करनी चाही और ना ही आशा ने किसी से कभी कुछ कहा.
अपने माँ पापा की लाडली और पढ़ाई मे व्यस्त रहने के कारण घर के कामों में कोई खास रुचि नहीं थी उसकी और ना ही कोई भार था उसपे. और यहां ससुराल आते ही घर की सारी जिम्मेवारी उसके सर आ गई. सास को अपने वो फूटी आंख ना सुहाती, वज़ह उनके बेटे राजेश का रसोई और घर के अन्य कामों में आशा का हाथ बटाना. आशा खुद एक working lady होने की वज़ह से कई बार चाहा कि घर में कोई maid रख ले, पर सास ससुर ने इसकी अनुमति नहीं दी. राजेश को भी अपनी माँ की खरी खोटी सुननी पड़ती थी. अपनी माँ का दुलारा बेटा आज नाकारा बेटा साबित हो रहा था. धीरे धीरे घर का माहौल बिगड़ने लगा. आशा के सारे सपनों पे जैसे पानी फिर गया. अचानक घर में एक नई खुशी का आगमन हुआ. आशा माँ बनने वाली थी, सारे बहुत खुश थे. लेकिन इस खुशी के साथ कई परेशानियां भी साथ आ गई. आशा के स्वास्थ्य पे असर पड़ने लगा. सबकी खुशी देख आशा ने एक बार फिर अपनी बात सबके सामने रखी कि घर में एक maid रख ली जाए. मगर इस बार भी वही हुआ, उसकी बात को सास ने मानने से इंकार कर दिया. आशा ने किसी तरह से ये दिन भी गुज़ार लिए.
फिर वो दिन आ गया जिस दिन का सबको बेसब्री से इंतजार था. आशा बहुत जि़द करके अपने मायके चली गई और वहां उसने एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया. यहां वो पुरसुकुन से रह रही थी, मगर कितने दिन. आख़िर वो दिन भी आ गया जब उसे ससुराल जाना था. मायके में तो माँ पापा ने उसे सर पर बिठा रखा था. मगर ससुराल जाते ही फिर से वही भाग दौड़ की जिंदगी.
दिन गुज़रते गए और एक दिन उसकी ननद ब्याह कर अपने ससुराल चली गई. सभी बहुत खुश थे. दिन जैसे पंख लगा कर उड़ रहे थे. आशा का बेटा अब 1 साल को होने को था. उसके पहले जन्मदिन पर ननद अपने मायके आई. आशा की सासु माँ की ख़ुशी का ठिकाना ना था. आख़िर ख़ुश क्यूँ ना होती, उनके दामाद ने घर में दो maid रख दिया था, घर के छोटे मोटे कामों में हाथ बंटाते, हर weekend पे outing पे ले जाते, साथ वक्त बिताते, उसकी हर ख्वाहिश पूरी करते, उनकी बेटी को उसकी सासु माँ ने पलकों पर बिठाया था.
आशा की सासु माँ अपने पड़ोसियों से ये कहते नहीं थक रही थी आज
"मेरा दामाद लाखों मे एक..."
और आशा अपने आंचल से आँखों को पोंछ बेटे के जन्मदिन की तैयारी में लग गई...
*जिस मापदंड पे दामाद लाखों मे एक हो गया आख़िर उसी मापदंड पे बेटा नाकारा कैसे हो गया. ये दोहरा मापदंड आख़िर क्यूँ... 😢
आख़िर बहु और बेटी मे ऐसा फर्क़ क्यूँ... 🙁
#SwetaBarnwal
अपने माँ पापा की लाडली और पढ़ाई मे व्यस्त रहने के कारण घर के कामों में कोई खास रुचि नहीं थी उसकी और ना ही कोई भार था उसपे. और यहां ससुराल आते ही घर की सारी जिम्मेवारी उसके सर आ गई. सास को अपने वो फूटी आंख ना सुहाती, वज़ह उनके बेटे राजेश का रसोई और घर के अन्य कामों में आशा का हाथ बटाना. आशा खुद एक working lady होने की वज़ह से कई बार चाहा कि घर में कोई maid रख ले, पर सास ससुर ने इसकी अनुमति नहीं दी. राजेश को भी अपनी माँ की खरी खोटी सुननी पड़ती थी. अपनी माँ का दुलारा बेटा आज नाकारा बेटा साबित हो रहा था. धीरे धीरे घर का माहौल बिगड़ने लगा. आशा के सारे सपनों पे जैसे पानी फिर गया. अचानक घर में एक नई खुशी का आगमन हुआ. आशा माँ बनने वाली थी, सारे बहुत खुश थे. लेकिन इस खुशी के साथ कई परेशानियां भी साथ आ गई. आशा के स्वास्थ्य पे असर पड़ने लगा. सबकी खुशी देख आशा ने एक बार फिर अपनी बात सबके सामने रखी कि घर में एक maid रख ली जाए. मगर इस बार भी वही हुआ, उसकी बात को सास ने मानने से इंकार कर दिया. आशा ने किसी तरह से ये दिन भी गुज़ार लिए.
फिर वो दिन आ गया जिस दिन का सबको बेसब्री से इंतजार था. आशा बहुत जि़द करके अपने मायके चली गई और वहां उसने एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया. यहां वो पुरसुकुन से रह रही थी, मगर कितने दिन. आख़िर वो दिन भी आ गया जब उसे ससुराल जाना था. मायके में तो माँ पापा ने उसे सर पर बिठा रखा था. मगर ससुराल जाते ही फिर से वही भाग दौड़ की जिंदगी.
दिन गुज़रते गए और एक दिन उसकी ननद ब्याह कर अपने ससुराल चली गई. सभी बहुत खुश थे. दिन जैसे पंख लगा कर उड़ रहे थे. आशा का बेटा अब 1 साल को होने को था. उसके पहले जन्मदिन पर ननद अपने मायके आई. आशा की सासु माँ की ख़ुशी का ठिकाना ना था. आख़िर ख़ुश क्यूँ ना होती, उनके दामाद ने घर में दो maid रख दिया था, घर के छोटे मोटे कामों में हाथ बंटाते, हर weekend पे outing पे ले जाते, साथ वक्त बिताते, उसकी हर ख्वाहिश पूरी करते, उनकी बेटी को उसकी सासु माँ ने पलकों पर बिठाया था.
आशा की सासु माँ अपने पड़ोसियों से ये कहते नहीं थक रही थी आज
"मेरा दामाद लाखों मे एक..."
और आशा अपने आंचल से आँखों को पोंछ बेटे के जन्मदिन की तैयारी में लग गई...
*जिस मापदंड पे दामाद लाखों मे एक हो गया आख़िर उसी मापदंड पे बेटा नाकारा कैसे हो गया. ये दोहरा मापदंड आख़िर क्यूँ... 😢
आख़िर बहु और बेटी मे ऐसा फर्क़ क्यूँ... 🙁
#SwetaBarnwal