Sunday 15 March 2020

इन आँखों में कुछ अरमान जगा दिया करते हैं,
चुपके से वो हमारी नींदें चुरा लिया करते हैं,
इतनी बार तो वो साँसें भी न लेते होंगे,
जितनी बार हम उनको याद किया करते हैं...

#SwetaBarnwal
इन आँखों में कुछ अरमान जगा दिया करते हैं,
चुपके से वो हमारी नींदें चुरा लिया करते हैं,
इतनी बार तो वो साँसें भी न लेते होंगे,
जितनी बार हम उनको याद किया करते हैं...

#SwetaBarnwal
हम तो खुशबु हैं जनाब,
हवाओं से उलझना फितरत है हमारी...
बिखरने का डर फूलों को होगा,
बिखर कर निखरने की आदत है हमारी...

#SwetaBarnwal
फूलों को डर है कि
वो मुरझा कर गिर जाएंगे,
हम तो खुशबु हैं #श्वेता,
हवाओं में बिखरे तो निखर जाएंगे...

#SwetaBarnwal 
राह-ए-वफ़ा में हम को ख़ुशी की तलाश थी,
दो कदम ही चले थे कि हर कदम पे रो पड़े।

#SwetaBarnwal 
हर बात महसूस हो जाए #श्वेता
मुमकिन तो नहीं,
वो ख़ुद इज़हार-ए-मोहब्बत कर जाएं
तो ऐतराज़ किसको है...

#SwetaBarnwal 
जितनी खूबसूरती से लोग रिश्ते बनाते हैं #श्वेता,
उतनी ही शिद्दत से क्यूँ लोग यहां भूल जाते हैं...

#SwetaBarnwal 

बेटा और बेटी...

बेटे की तरह बेटी भी
नौ महीने माँ की कोख में पलते हैं
बेटे की तरह बेटी भी
बाबा की उंगली थाम के चलते हैं,
होती है दोनों की सूरत एक जैसी
होती है दोनों ही मुरत एक जैसी,
बेटे की तरह बेटी भी
माँ की गोद में सोते हैं,
बेटे की तरह बेटी भी
हंसते गाते और रोते हैं,
करते नादानियाँ दोनों एक जैसी
करते मनमानियाँ दोनों एक जैसी,
बेटे की तरह बेटी भी
नाम रौशन करती हैं,
बेटे की तरह बेटी भी
कुल का मान रखती है,
करते अठखेलियाँ दोनों एक जैसी
करते शैतानियाँ दोनों एक जैसी,
बेटा पिता का साया है
तो बेटी माँ की परछाई है,
भला माँ बाप की सेवा में
बेटी कब पीछे आई है,
बेटा अगर गुमान है
तो बेटी भी स्वाभिमान है,
फ़िर भी क्यूँ नहीं होती है
दोनों की किस्मत एक जैसी,
फ़िर भी क्यूँ कोख में ही
खत्म कर दी जाती है इसकी कहानी,.
क्यूँ बेटी के जन्म का मातम मनाते हैं लोग,
क्यूँ उसे बोझ समझ दूर फेंक देते हैं लोग.
बेटा ग़र मान है तो बेटी कौन सा अपमान है,
क्यूँ नहीं समाज देता इन्हें इज्ज़त समान है...


#SwetaBarnwal

Friday 13 March 2020

ख़ास हूँ मैं...

कैसे कह दूँ अब जीने की चाह नहीं इस दिल में,
ना जाने कितने ही लोगों के जीने की वज़ह हूँ मैं...
कैसे रोक लूँ अपनी सासों को मैं,
ना जाने कितने ही दिलों की धड़कन हूँ मैं,
कैसे कह दूँ कि अब ज़िंदगी से हार बैठी हूँ मैं,
जबकि कितने ही लोगों की उम्मीद हूँ मैं,
ख़ुद के लिए एक मुट्ठी ख़ुशी भी ना ख़रीद पाई कभी,
फ़िर भी ना जाने कितनों के ख़ुशी की वज़ह हूँ मैं,
होंठों पर खोखली सी हंसी समेटे हुए हरदम,
ना जाने कितने ही चेहरों की मुस्कान हूँ मैं,
मर चुका है दिल से सारे अह्सास जिसके,
औरों के जीवन में महकती हूँ मैं अह्सास बनके,
कुछ भी तो नहीं है ख़ास मुझमे,
फ़िर भी ना जाने कितनों के लिए ख़ास हूँ मैं...


#SwetaBarnwal


Saturday 7 March 2020

नारी हूँ मैं कोई श्राप नहीं...

तोड़ के हर दर-ओ-दिवार,
एक दिन मैं उड़ जाउंगी,
इस दुनिया से दूर कहीं
एक नया जहां बनाऊँगी,
लाख लगा लो पहरे मुझपर,
आसमाँ को छू कर मैं दिखलाउंगी,
तोड़ के सारे बंधन मैं
फुर्र से उड़ जाउंगी,
बांध दो ईन पैरों में चाहे
रस्मों रिवाज की जंजीरें,
बदल के तेरी दुनिया मैं
नया इतिहास रचाउंगी,
अपनी मेहनत और हिम्मत से,
अपनी पहचान बनाऊँगी,
जो नहीं हुआ है पहले कभी,
वो करके मैं दिखलाउंगी,
लड़की हूँ कोई बोझ नहीं,
ये सबको अब समझाउंगी,
खड़ी कर दो चाहे कितनी भी ऊंची
परंपराओं की दिवार तुम,
या बिछा दो कितने भी कांटे
मेरी राहों में तुम,
नौ महिने कोख में रख कर तुझको
जो दे सकती है जीने का अधिकार तुझे,
फ़िर सोचो ग़र आ जाए वो ज़िद पर अपने
क्या नहीं फ़िर कर सकती है वो,
नारी हूँ मैं कोई श्राप नहीं,
छीने कोई हक़ मेरा
ये किसी को अधिकार नहीं...

#SwetaBarnwal


बस एक दिन मे ना बांधों तुम नारी के सम्मान को,

गर दे सकते हो तो दे दो पंख उनके स्वाभिमान को...

महिला दिवस के एक दिन के लिए जो है वंदनीय,

भला क्यूँ रहे वो 364 दिन निंदनीय...

#SwetaBarnwal 

ऐ विधाता...!

 ऐ विधाता...! ना जाने तू कैसे खेल खिलाता है...  किसी पे अपना सारा प्यार लुटाते हो, और किसी को जीवन भर तरसाते हो,  कोई लाखों की किस्मत का माल...