Sunday 12 July 2020

अच्छा नहीं होता...

नमस्कार दोस्तों... 🙏🏻
अगर आपको मेरी लेखनी पसंद आये तो comment box मे comment करना ना भूलें... 
आपका मार्गदर्शन मेरे लिए प्रेरणा है... 
धन्यवाद... 🙏🏻


तेरा यूँ हर बात पे तंज करना अच्छा नहीं होता,
पत्नी हूँ मैं तुम्हारी, जन्मों का नाता है मेरा तुमसे 
मुझ पर तेरा यूँ शक़ करना अच्छा नहीं होता,
छोटी बड़ी बातेँ मिल कर सुलझा सकते हैं,
मर्द हो तुम इस का अहम अच्छा नहीं होता,
दो घड़ी किसी से हंस बोल क्या लिया
क़यामत आ जाती है,
हर बात पे तेरा ये तल्ख़ मिजाज़ अच्छा नहीं होता,
कामकाजी महिला हूँ मैं कई लोगों से मिलना जुलना होता है,
कुछ स्त्री तो कुछ पुरुषों से भी दोस्ती होती है,
बात कर लूं किसी पुरुष से तो चरित्रहीन बन जाती हूँ,
हर बात पे यूँ सवालिया निशान खड़े करना अच्छा नहीं होता,
हज़ारों काम होते हैं, कई जरूरतें होती है,
स्त्री पुरुष के बीच सिर्फ़ शारीरिक बंधन ही हो ये सोचना अच्छा नहीं होता,
मर्यादाओं का ख्याल मुझे भी होता है,
समाज, रिश्ते-नाते, बंधन की परवाह मुझे भी होती है,
हर रिश्ते को यूँ बदनाम करना अच्छा नहीं होता,
कुछ ऐसे भी होते हैं दुनिया में जिनसे अनजाना सा बंधन होता है, 
नाम नहीं होता है उसका फिर भी पाक होता है, 
सब के हजारों सवाल से बच निकल जाती हूँ, 
पर तेरा एक भी सवाल पूछना अच्छा नहीं होता, 
चाहूँ तो जवाब तुम्हें भी दे सकती हूँ, 
चाहूँ तो कई सवाल मैं भी खड़े कर सकती हूँ,
पर जिससे जन्मों का रिश्ता है, उन पे उंगली उठाना अच्छा नहीं होता, 
जिसके साथ पूरी ज़िंदगी चलना है, उनका यूँ लड़खड़ाना अच्छा नहीं होता...

#SwetaBarnwal 

Monday 6 July 2020

पति की अभिलाषा... 😄

नमस्कार दोस्तों... 🙏🏻
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आपका मार्गदर्शन मेरे लिए प्रेरणा है... 
धन्यवाद... 🙏🏻

#कटाक्ष#

एक पति की अभिलाषा उसकी पत्नी के प्रति...

आख़िर एक पति कैसी पत्नी चाहता है, अपनी पत्नी से किस तरह की आशाएं रखता है, आइए जानते हैं...


जय सिया राम बोलो जय सिया राम,
ऐसी संगिनी मुझे दे भगवान...

सुबह सवेरे चाय बनाए,
चाय बनाकर मुझे पिलाए,
सीने से लग कर मुझे रिझाए,
और कहे उठो उठो मेरी जान, 

ऐसी संगिनी मुझे दे भगवान...

दिन भर घर के काज संवारे,
सास ससुर के पैर दबाये,
ननद को सर का ताज बनाए,
देवर का भी मान बढ़ाए,
और कहे मुझे पति महान,

ऐसी संगिनी मुझे दे भगवान...

घर के कामों में माहिर हो,
जब जो माँगों ले वो हाजिर हो,
खाना वो स्वादिष्ट बनाए,
बच्चों की tutor भी बन जाए,
रात को जो बन जाए मोहिनी,

ऐसी संगिनी मुझे दे भगवान...

पति परमेश्वर माने मुझको,
मैं जो कह दूँ सुन ले उसको,
मेरी हर बात का वो मान रखे,
मेरे ज़ज्बात का सम्मान करे,
चाहे करूँ मैं कैसे भी काम,

ऐसी संगिनी मुझे दे भगवान...

पुराने रिश्ते नाते भूल वो जाए, 
मायके को पल में बिसराये, 
भाई बहन और मित्र ना भाये, 
बस मुझमे ही वो रम जाए, 

ऐसी संगिनी मुझे दे भगवान... 

जय सिया राम बोलो जय सिया राम,
ऐसी संगिनी मुझे दे भगवान...


#SwetaBarnwal 

Friday 3 July 2020

आत्मनिर्भर स्त्री...

स्त्री अगर आत्मनिर्भर और स्वावलंबी हो,
तो आसान नहीं होगा उसके साथ प्रेम,
ऐसा नहीं कि उसे प्रेम स्वीकार नहीं,
और ना ही ये कि उसे प्रेम की समझ नहीं,
बस हर बात पे झुकना उसे मंजूर नहीं,
नहीं मिला पाती है वो तुम्हारी हाँ मे हाँ,
सही को सही और ग़लत को ग़लत कहने का साहस रखती है वो,
वो ना तो रूठना जानती है और ना झूठी खिदमत करती है,
वो तुम्हारे अन्याय को चुपचाप सहना नहीं जानती है, 
जो करती है दिल से करती है, वर्ना छोड़ देती है.
उसकी ना का मतलब ना ही होता है, ये मनवाना जानती है वो,
वो तर्क और वितर्क करना जानती है,
अपनी बातों का मान रखना जानती है वो,
तुम्हें, तुम्हारे घर और बच्चों को भी सम्भालना जानती है वो,
सिर्फ़ घर में ही नहीं, वो बाहर भी तुम्हारा संबल बनती है,
वो सम्मान के बदले में सम्मान और प्यार के बदले में प्यार पाना चाहती है,
वो मोम की गुड़िया बन रहना नहीं जानती है,
ना वो सिर्फ बिस्तर की शोभा बन जीना जानती है,
वो ख़ुद को सजाती और संवारती है अपने आत्मविश्वास से, 
वो कभी अपनी जरूरतों और अनावश्यक की मांग ले तुमसे नहीं लड़ती, 
मगर फ़िर भी वो लड़ती है, पड़े जरूरत तो प्रतिकार भी करती है,
अपने स्वाभिमान के लिए हर मुश्किल से टकराना जानती है वो,
पर अगर जो किया अनादर तो अपने मान की रक्षा करना भी जानती है,
नहीं झुकती है कभी वो तुम्हारे पुरुषत्व के दंभ के आगे,
पर तेरे निश्छल प्रेम पर अपना सर्वस्व लुटाना जानती है वो,
आसान नहीं होता है ऐसी स्त्री से प्रेम करना,
बड़ी बड़ी मुसीबतों से टकराने का हौसला रखती है वो,
मगर टूट कर बिखर जाती है तेरे झूठ, फरेब और पुरुषत्व के अहंकार से टकरा कर,
और रह जाती है शेष सिर्फ़ और सिर्फ़ एक कभी ना ख़त्म होने वाली ख़ामोशी...


#SwetaBarnwal 

Wednesday 1 July 2020

धर्म से अधर्म...

मन में श्रद्धा और भक्ति भाव लिए
सब तेरी चौखट आते हैं,
स्वार्थ और लोलुपता वश
उनके मन को छलता है तू
प्रभु चरणों को छोड़ पाखंडी
तू अल्लाह अल्लाह भजता है,
मन में जिसके कृष्ण और राम बसे हैं,
तू उनका दोहन करता है,
जिसने तुझको जन्म दिया,
छल तू उनसे करता है...
घर मंदिर सब छोड़ छाड़ वो
तेरे दर पर आते हैं
तुझको सुनने के ख़ातिर,
श्रद्धा सुमन वो लाते हैं,
तेरी वाणी पर नाज था उनको,
तुझको देव दूत वो समझते थे,
वेदों का ज्ञाता मान तुझे,
तुझपे सर्वस्व लुटाया था,
पर ओ अधर्मी तूने 
धन और संपत्ति की चकाचौंध मे,
भुला दिया तूने 
सत्य सनातन हिन्दू धर्म को,
व्यासपीठ पर बैठ के तूने
इस्लाम से अपना नाता जोड़ा,
भूल गए तुम कृष्ण की मुरली,
और भूले तुम शिव के विष पान को,
श्लोकों को बिसरा कर तूने
फिल्मी गानों पर नाच नचाया,
जिसने तुझको पूजा
तुझको इतना सम्मान दिया,
भौतिक सुख के लालच में 
उसपर ही प्रहार किया
हिन्दू होकर भी तूने 
हिन्दू धर्म का अपमान किया,
हमारी आस्था को तोड़ तूने 
अपना ही सर्वनाश किया
व्यास पीठ पर बैठ के तुझको
कुरान नहीं अब पढ़ने देगा 
जाग चुका है हिन्दू अब तो,
और अन्याय नहीं यह होने देगा...

#SwetaBarnwal

... ऐ ज़िंदगी....

इस भागम भाग भरी जिंदगी में,
मैं अब थोड़ी सी थकने लगी हूँ,
किस्तों मे बंटी हुई ये जिन्दगी,
अरमान सारे बिखरे-बिखरे से,
समेटना चाहूँ भी तो,
हाथों में कुछ आता नहीं,
मुद्दत हो गए हैं ख़ुद से ही मिले हुए,

तुझसे मिलने की चाह में
ऐ ज़िंदगी....
मैं ख़ुद से ही बिछड़ने लगी हूँ,

ज़ख्म गहरा था, चोट दिल में लगी थी,
उलझने बड़ी थी और रस्ते थे सारे बंद,
हौसला मगर फिर भी हुआ ना कम,
सोचा था सुलझा ही लुंगी तुझे,
बड़े प्यार से यूँ मना लुंगी तुझे,
पर दुनियादारी मे हम थोड़े कच्चे रह गए,
सब बड़े हो गए और अक्ल मे हम बच्चे रह गए,

तुझको सुलझाने की जद्दोजहद मे,
ऐ ज़िंदगी... 
ख़ुद को ही उलझा बैठे हैं हम,

माना तू किसी के लिए रुकती नहीं,
किसी मोड़ पर थमती नहीं,
पर क्या तू कभी थकती नहीं....?
ज्यादा ना सही, दो पल के लिए रुक तो,
थोड़ा ठहर, एक मौका मुझको भी तो दे,

सुलझा कर दिखाऊँ तेरी उलझनों को,
ऐ ज़िंदगी...
एक बार ख़ुद से ख़ुद को मिलने तो दे,

फ़िर से ख़ुद को गले लगाने तो दे,
जो बिखर गया है, उसे समेटने तो दे,
आशाओं को फिर से बटोरने तो दे,
ज़ख्म जो अब तक हरे हैं,
एक बार मरहम उन पर लगाने तो दे,
टूटी हुई उम्मीदों को फिर से जोड़ने तो दे,

कुछ पल ख़ामोशी से कुछ सोचने तो दे,
ऐ ज़िंदगी... 
एक बार मेरे आशियाने मे भी थोड़ी सी रौशनी तो दे.

वक़्त है कि रुकता नहीं,
वक़्त है कि थमता नहीं, 
बहुत कोलाहल है चहूँ ओर मेरे,
चंद लम्हें तो दे सबकुछ समझने के लिए 
फ़िर से मुस्करा उठूंगी मैं भी,
समेट कर अपने वज़ूद को,

एक बार फिर तुझसे नजरें मिलाऊँगी मैं,
ऐ ज़िंदगी...
एक बार मुझ पर भी ऐतबार कर के तो देख...

#SwetaBarnwal

ऐ विधाता...!

 ऐ विधाता...! ना जाने तू कैसे खेल खिलाता है...  किसी पे अपना सारा प्यार लुटाते हो, और किसी को जीवन भर तरसाते हो,  कोई लाखों की किस्मत का माल...