Friday 28 August 2020

घर में एक कोना...

 मुझमे थोड़ा मैं को रह जाने तो दो,

जो बिखर गया है उसको समेटने की मोहलत तो दो,

कुछ तुम ढूंढ लाओ कुछ मैं ढूंढ लाऊँ,

इस घर में एक ऐसा कोना रहने तो दो...


कुछ अनकही बातेँ,

कुछ तन्हाई की रातें,

कभी सिसकियों मे दबे ज़ज्बात,

तो कभी पास हो कर दूर होने का अह्सास,

In सबको एक बार सहलाने तो दो,

इस घर में एक ऐसा कोना रहने तो दो...


जहां मैं अपनी कहूँ और तुम सुन सको,

जहां तुम कहो और मैं समझ सकूँ,

पल भर को सही जहां अह्सास जिंदा रहे,

इस घर में एक ऐसा कोना रहने तो दो...


जहां ज़िंदगी खुली किताब हो,

होठों पे सच्ची सी मुस्कान हो,

रहे ना जज़्बातों पे कोई पर्दा,

इस घर में एक ऐसा कोना रहने तो दो...


कितना वक़्त गुजर गया जिम्मेदारियों मे,

हर ज़ज्बात दफन हो गए ख़ामोशियों मे,

कभी तुम्हारी मसरूफियत तो कभी मेरी बेबसी,

ले कर उड़ गए ज़िंदगी के हसीन लम्हें,

छुपा कर रख सकूँ जहां कुछ लम्हों को,

इस घर में एक ऐसा कोना रहने तो दो...


#SwetaBarnwal 

Tuesday 25 August 2020

माँ...

कविता कैसी लगी, अपनी राय अवश्य दें... 🙏🏻

बरसों बीत गए ख़ुद को आईने में निहारे हुए,

सब को ज़िंदगी के गुर सिखाने वाली

आज अरसा गुज़र गया ख़ुद के साथ वक़्त बिताए हुए,

जिस बात के लिए कल तक तुझे समझाया करती थी मैं,

आज ख़ुद ही उन उलझनों मे उलझ कर रह गई हूँ माँ... 


क्या क्या ना सोचा था, क्या क्या ना चाहा था,

दुनिया को हर कदम पर जिसने ठेंगा दिखाया था,

आज दुनिया आगे निकल गई मैं ख़ुद पीछे रह गई माँ,

हर वक़्त देखा करती थी तुझे दुनियादारी मे उलझे हुए,

जीना नहीं आता तुझे यही सोचा करती थी माँ,

सब के लिए खुशियां खरीदने मे आगे,

ना जाने क्यूँ ख़ुद के लिए कंजूसी करती है माँ,

आज देखती हूँ ख़ुद को तो तुझको ही पाती हूँ माँ... 


कभी कहीं जो घूमने जाना हुआ,

बस यूँ जूड़ा बना निकल जाती थी माँ,

कभी तुझको फुर्सत से संवरते नहीं देखा,

चिढ़ सी तो जाती थी तुम्हारे इस जल्दबाजी पे मैं,

आज दफ्तर जाते मैं भी उसी तरह बालों के जुड़े बना लेती हूँ,

तेरी ही तरह कुछ कुछ मैं भी घर सम्भाल लेती हूँ माँ... 


ना कभी ख़ुद का होश रहता था तुझे,

हम सब के लिए एक पैर पे सदा खड़ी रहती थी तू,

सब के मुह का स्वाद बना रहे,

इस हड़बड़ाहट मे हाथों को भी जला लेती थी तू,

कई बार झुंझला जाती थी मैं,

बिलकुल ख्याल नहीं रखती हो अपना,

सुबह जागने से लेकर सोने तक क्यूँ भागते रहती हो माँ,

आज उन सवालों से ख़ुद को ही घिरा पाती हूँ माँ... 


कभी जो अगर घर में कोई मेहमान आ जाए,

या फिर हो कोई तीज त्योहार,

रसोई से बाहर आना जैसे दुर्लभ हो जाता था तुम्हारे लिए,

कभी सबके साथ फुर्सत के पल बिताते देखा नहीं तुझको,

कभी गीले बालों को धूप में बैठ सूखाते नहीं देखा,

कभी जी खोल कर हंसते मुस्कराते नहीं देखा तुझको,

कभी अपनी ख्वाहिशों के लिए कुछ करते नहीं देखा तुझको,

आज जब ख़ुद थक कर बैठती हूँ तो कुछ कुछ तुम जैसी ही लगती हूँ माँ... 


महंगे कपड़े और जेवर भूल बैठी तुम,

ताकि तेरे बच्चों को मिले खुला आसमान,

सोचती थी कि तुम्हें ज़िंदगी जिनी नहीं आती,

तुम्हें सजना संवारना नहीं आता,

तुम्हारे कोई सपने नहीं, ना ही कोई चाहत है तुम्हारी,

आज सोचती हूँ तो आँखों मे दो बूंद चमक उठते हैं,

ना जाने कब से मैं खुल कर हंसी नहीं,

सोचती हूँ ये जब तब तुम जैसी ही फीकी लगने लगती हूँ माँ... 


हंस कर दो प्यार के बोल कोई बोल जो दे,

इस तपते मन के रेगिस्तान में अपनेपन का कोई भाव जो भर दे,

मेरे चंद आसुओं को ग़र कोई मुस्कान में बदल दे,

मेरे कांधे पर कोई प्यार से अपने हाथ रख दे,

एक लम्हे को जैसे तेरी ही ममता झलक उठती है माँ,

तुमसे दूर हो कर भी मैं आज तुम सी हो गई हूँ माँ...


#SwetaBarnwal

Sunday 12 July 2020

अच्छा नहीं होता...

नमस्कार दोस्तों... 🙏🏻
अगर आपको मेरी लेखनी पसंद आये तो comment box मे comment करना ना भूलें... 
आपका मार्गदर्शन मेरे लिए प्रेरणा है... 
धन्यवाद... 🙏🏻


तेरा यूँ हर बात पे तंज करना अच्छा नहीं होता,
पत्नी हूँ मैं तुम्हारी, जन्मों का नाता है मेरा तुमसे 
मुझ पर तेरा यूँ शक़ करना अच्छा नहीं होता,
छोटी बड़ी बातेँ मिल कर सुलझा सकते हैं,
मर्द हो तुम इस का अहम अच्छा नहीं होता,
दो घड़ी किसी से हंस बोल क्या लिया
क़यामत आ जाती है,
हर बात पे तेरा ये तल्ख़ मिजाज़ अच्छा नहीं होता,
कामकाजी महिला हूँ मैं कई लोगों से मिलना जुलना होता है,
कुछ स्त्री तो कुछ पुरुषों से भी दोस्ती होती है,
बात कर लूं किसी पुरुष से तो चरित्रहीन बन जाती हूँ,
हर बात पे यूँ सवालिया निशान खड़े करना अच्छा नहीं होता,
हज़ारों काम होते हैं, कई जरूरतें होती है,
स्त्री पुरुष के बीच सिर्फ़ शारीरिक बंधन ही हो ये सोचना अच्छा नहीं होता,
मर्यादाओं का ख्याल मुझे भी होता है,
समाज, रिश्ते-नाते, बंधन की परवाह मुझे भी होती है,
हर रिश्ते को यूँ बदनाम करना अच्छा नहीं होता,
कुछ ऐसे भी होते हैं दुनिया में जिनसे अनजाना सा बंधन होता है, 
नाम नहीं होता है उसका फिर भी पाक होता है, 
सब के हजारों सवाल से बच निकल जाती हूँ, 
पर तेरा एक भी सवाल पूछना अच्छा नहीं होता, 
चाहूँ तो जवाब तुम्हें भी दे सकती हूँ, 
चाहूँ तो कई सवाल मैं भी खड़े कर सकती हूँ,
पर जिससे जन्मों का रिश्ता है, उन पे उंगली उठाना अच्छा नहीं होता, 
जिसके साथ पूरी ज़िंदगी चलना है, उनका यूँ लड़खड़ाना अच्छा नहीं होता...

#SwetaBarnwal 

Monday 6 July 2020

पति की अभिलाषा... 😄

नमस्कार दोस्तों... 🙏🏻
अगर आपको मेरी लेखनी पसंद आये तो comment box मे comment करना ना भूलें... 
आपका मार्गदर्शन मेरे लिए प्रेरणा है... 
धन्यवाद... 🙏🏻

#कटाक्ष#

एक पति की अभिलाषा उसकी पत्नी के प्रति...

आख़िर एक पति कैसी पत्नी चाहता है, अपनी पत्नी से किस तरह की आशाएं रखता है, आइए जानते हैं...


जय सिया राम बोलो जय सिया राम,
ऐसी संगिनी मुझे दे भगवान...

सुबह सवेरे चाय बनाए,
चाय बनाकर मुझे पिलाए,
सीने से लग कर मुझे रिझाए,
और कहे उठो उठो मेरी जान, 

ऐसी संगिनी मुझे दे भगवान...

दिन भर घर के काज संवारे,
सास ससुर के पैर दबाये,
ननद को सर का ताज बनाए,
देवर का भी मान बढ़ाए,
और कहे मुझे पति महान,

ऐसी संगिनी मुझे दे भगवान...

घर के कामों में माहिर हो,
जब जो माँगों ले वो हाजिर हो,
खाना वो स्वादिष्ट बनाए,
बच्चों की tutor भी बन जाए,
रात को जो बन जाए मोहिनी,

ऐसी संगिनी मुझे दे भगवान...

पति परमेश्वर माने मुझको,
मैं जो कह दूँ सुन ले उसको,
मेरी हर बात का वो मान रखे,
मेरे ज़ज्बात का सम्मान करे,
चाहे करूँ मैं कैसे भी काम,

ऐसी संगिनी मुझे दे भगवान...

पुराने रिश्ते नाते भूल वो जाए, 
मायके को पल में बिसराये, 
भाई बहन और मित्र ना भाये, 
बस मुझमे ही वो रम जाए, 

ऐसी संगिनी मुझे दे भगवान... 

जय सिया राम बोलो जय सिया राम,
ऐसी संगिनी मुझे दे भगवान...


#SwetaBarnwal 

Friday 3 July 2020

आत्मनिर्भर स्त्री...

स्त्री अगर आत्मनिर्भर और स्वावलंबी हो,
तो आसान नहीं होगा उसके साथ प्रेम,
ऐसा नहीं कि उसे प्रेम स्वीकार नहीं,
और ना ही ये कि उसे प्रेम की समझ नहीं,
बस हर बात पे झुकना उसे मंजूर नहीं,
नहीं मिला पाती है वो तुम्हारी हाँ मे हाँ,
सही को सही और ग़लत को ग़लत कहने का साहस रखती है वो,
वो ना तो रूठना जानती है और ना झूठी खिदमत करती है,
वो तुम्हारे अन्याय को चुपचाप सहना नहीं जानती है, 
जो करती है दिल से करती है, वर्ना छोड़ देती है.
उसकी ना का मतलब ना ही होता है, ये मनवाना जानती है वो,
वो तर्क और वितर्क करना जानती है,
अपनी बातों का मान रखना जानती है वो,
तुम्हें, तुम्हारे घर और बच्चों को भी सम्भालना जानती है वो,
सिर्फ़ घर में ही नहीं, वो बाहर भी तुम्हारा संबल बनती है,
वो सम्मान के बदले में सम्मान और प्यार के बदले में प्यार पाना चाहती है,
वो मोम की गुड़िया बन रहना नहीं जानती है,
ना वो सिर्फ बिस्तर की शोभा बन जीना जानती है,
वो ख़ुद को सजाती और संवारती है अपने आत्मविश्वास से, 
वो कभी अपनी जरूरतों और अनावश्यक की मांग ले तुमसे नहीं लड़ती, 
मगर फ़िर भी वो लड़ती है, पड़े जरूरत तो प्रतिकार भी करती है,
अपने स्वाभिमान के लिए हर मुश्किल से टकराना जानती है वो,
पर अगर जो किया अनादर तो अपने मान की रक्षा करना भी जानती है,
नहीं झुकती है कभी वो तुम्हारे पुरुषत्व के दंभ के आगे,
पर तेरे निश्छल प्रेम पर अपना सर्वस्व लुटाना जानती है वो,
आसान नहीं होता है ऐसी स्त्री से प्रेम करना,
बड़ी बड़ी मुसीबतों से टकराने का हौसला रखती है वो,
मगर टूट कर बिखर जाती है तेरे झूठ, फरेब और पुरुषत्व के अहंकार से टकरा कर,
और रह जाती है शेष सिर्फ़ और सिर्फ़ एक कभी ना ख़त्म होने वाली ख़ामोशी...


#SwetaBarnwal 

Wednesday 1 July 2020

धर्म से अधर्म...

मन में श्रद्धा और भक्ति भाव लिए
सब तेरी चौखट आते हैं,
स्वार्थ और लोलुपता वश
उनके मन को छलता है तू
प्रभु चरणों को छोड़ पाखंडी
तू अल्लाह अल्लाह भजता है,
मन में जिसके कृष्ण और राम बसे हैं,
तू उनका दोहन करता है,
जिसने तुझको जन्म दिया,
छल तू उनसे करता है...
घर मंदिर सब छोड़ छाड़ वो
तेरे दर पर आते हैं
तुझको सुनने के ख़ातिर,
श्रद्धा सुमन वो लाते हैं,
तेरी वाणी पर नाज था उनको,
तुझको देव दूत वो समझते थे,
वेदों का ज्ञाता मान तुझे,
तुझपे सर्वस्व लुटाया था,
पर ओ अधर्मी तूने 
धन और संपत्ति की चकाचौंध मे,
भुला दिया तूने 
सत्य सनातन हिन्दू धर्म को,
व्यासपीठ पर बैठ के तूने
इस्लाम से अपना नाता जोड़ा,
भूल गए तुम कृष्ण की मुरली,
और भूले तुम शिव के विष पान को,
श्लोकों को बिसरा कर तूने
फिल्मी गानों पर नाच नचाया,
जिसने तुझको पूजा
तुझको इतना सम्मान दिया,
भौतिक सुख के लालच में 
उसपर ही प्रहार किया
हिन्दू होकर भी तूने 
हिन्दू धर्म का अपमान किया,
हमारी आस्था को तोड़ तूने 
अपना ही सर्वनाश किया
व्यास पीठ पर बैठ के तुझको
कुरान नहीं अब पढ़ने देगा 
जाग चुका है हिन्दू अब तो,
और अन्याय नहीं यह होने देगा...

#SwetaBarnwal

... ऐ ज़िंदगी....

इस भागम भाग भरी जिंदगी में,
मैं अब थोड़ी सी थकने लगी हूँ,
किस्तों मे बंटी हुई ये जिन्दगी,
अरमान सारे बिखरे-बिखरे से,
समेटना चाहूँ भी तो,
हाथों में कुछ आता नहीं,
मुद्दत हो गए हैं ख़ुद से ही मिले हुए,

तुझसे मिलने की चाह में
ऐ ज़िंदगी....
मैं ख़ुद से ही बिछड़ने लगी हूँ,

ज़ख्म गहरा था, चोट दिल में लगी थी,
उलझने बड़ी थी और रस्ते थे सारे बंद,
हौसला मगर फिर भी हुआ ना कम,
सोचा था सुलझा ही लुंगी तुझे,
बड़े प्यार से यूँ मना लुंगी तुझे,
पर दुनियादारी मे हम थोड़े कच्चे रह गए,
सब बड़े हो गए और अक्ल मे हम बच्चे रह गए,

तुझको सुलझाने की जद्दोजहद मे,
ऐ ज़िंदगी... 
ख़ुद को ही उलझा बैठे हैं हम,

माना तू किसी के लिए रुकती नहीं,
किसी मोड़ पर थमती नहीं,
पर क्या तू कभी थकती नहीं....?
ज्यादा ना सही, दो पल के लिए रुक तो,
थोड़ा ठहर, एक मौका मुझको भी तो दे,

सुलझा कर दिखाऊँ तेरी उलझनों को,
ऐ ज़िंदगी...
एक बार ख़ुद से ख़ुद को मिलने तो दे,

फ़िर से ख़ुद को गले लगाने तो दे,
जो बिखर गया है, उसे समेटने तो दे,
आशाओं को फिर से बटोरने तो दे,
ज़ख्म जो अब तक हरे हैं,
एक बार मरहम उन पर लगाने तो दे,
टूटी हुई उम्मीदों को फिर से जोड़ने तो दे,

कुछ पल ख़ामोशी से कुछ सोचने तो दे,
ऐ ज़िंदगी... 
एक बार मेरे आशियाने मे भी थोड़ी सी रौशनी तो दे.

वक़्त है कि रुकता नहीं,
वक़्त है कि थमता नहीं, 
बहुत कोलाहल है चहूँ ओर मेरे,
चंद लम्हें तो दे सबकुछ समझने के लिए 
फ़िर से मुस्करा उठूंगी मैं भी,
समेट कर अपने वज़ूद को,

एक बार फिर तुझसे नजरें मिलाऊँगी मैं,
ऐ ज़िंदगी...
एक बार मुझ पर भी ऐतबार कर के तो देख...

#SwetaBarnwal

Monday 22 June 2020

यारों के भी यार है हम,
सब के दिल पर करते राज हैं हम 
दिल से निभाते हैं हर रिश्ता, 
करते नहीं कोई व्यापार है हम...

#SwetaBarnwal
हमसे दूर जाना चाहोगे तो भी तुम जा ना पाओगे,
तेरे हिस्से की दोस्ती भी हम दिल-ओ-जान से निभाएंगे...

#SwetaBarnwal

Sunday 21 June 2020

रगों मे देश प्रेम और दिलों में जोश रहता है,
ये हिंद का सिपाही है, ये मौत से कब डरता है...

#SwetaBarnwal

Wednesday 10 June 2020

चन्द लम्हें...

यूँ अचानक किसी मोड़ पर, 
एक रोज़ उनसे टकरा गए, 
मिली जो नजरों से नज़र,
दिल में दफन अनकही बातेँ 
लबों पर आने लगी, 
कदम लड़खड़ाने लगे,
आंखें शर्माने लगी, 
हुआ कुछ ऐसा असर
ना वो रहे होश में 
और ना ही मुझको कोई खबर, 
चंद लम्हों मे जैसे 
सदियां गुज़र गई, 
ये जो लुढ़क कर 
दामन में हमारे 
वक़्त आ गया, 
गुज़रा हुआ कल 
पल में आज हो गया, 
उलझी हुई थी ज़िन्दगी, 
मिली जो उनसे 
तो गुलज़ार हो गई, 
ख़ुद से ही जैसे मैं 
बेज़ार हो गई, 
फ़िर से गुम ना हो जाए 
ये लम्हा कहीं, 
यही सोच हाथ बढ़ाया 
समेटने को इसे, 
अगले ही पल 
नींद टूटी और 
ख़ुद को तन्हा पाया, 
जो किस्मत में ही नहीं 
जाने वो कैसे सपनों में आया, 
झूठे ख्यालों से ही सही 
मेरे मन को हर्षाया... 


#SwetaBarnwal 

अमर प्रेम...

कोई नाता नहीं 
फ़िर भी खास है वो, 
लगता है जैसे 
हर पल पास है वो, 
अनजानी सी डोर है, 
खिंचे उसकी ओर है, 
इस जन्म का या फिर 
कई जन्मों का, 
पता नहीं ये
कैसा बंधन है, 
ना रस्मों रिवाज़ की 
बंदिश कोई, 
ना इस रिश्ते का 
कोई नाम है, 
ना मानो तो 
कुछ नहीं 
और मानो तो 
राधा कृष्ण का 
प्यार है, 
कुछ ऐसे भी 
रिश्ते होते हैं 
जो बिन रस्मों के 
बंध जाते हैं, 
ना जाने ऐसे रिश्ते 
दुनिया में क्या 
कहलाते हैं, 
ये दिल के 
रिश्ते होते हैं 
जो दिल ही दिल 
मे पलते हैं,
नाम ना दो 
कोई इसको, 
ये अमर प्रेम 
कहलाते हैं... 

#SwetaBarnwal 

रक्षक...

रोज की तरह आज फिर हम घर से निकले, 
दिल में फ़िर से वही अरमान लिए, 
सलामत रहे यह देश हमारा, 
चाहे फ़िर हम रहे ना रहे, 
सर पर बांधा है कफन हमने, 
हाथों में सजाये रखा है जान,
मौत आए तो कोई ग़म नहीं, 
रहे मुस्कराता देश हमारा ये कम नहीं, 
हम लड़ रहे यहां ताकि तुम सलामत रहो,
माना दुश्मन अनदेखा है, 
पर हौसला हमारा कम नहीं, 
कई रूप है हमारे, देश के प्रहरी है हम 
सड़क हो या अस्पताल हर जगह तैनात हम, 
कहीं डॉ के भेष मे तो कहीं सिपाही, 
कहीं सफाई कर्मचारी तो कहीं नर्स बन कर, 
कहीं भूखों का निवाला बन कर, 
कहीं गरीब और मजबूरों का सहारा बन कर, 
कहीं बन कर विज्ञान का हाथ 
भर रहे हैं ऊंची उड़ान, 
ताकि जीता रहे अपना हिन्दुस्तान... 

दिन रात डटे हैं हम इस जंग में, 
तुम रह सको बेखौफ घर में, 
ताकि जीता रहे अपना हिन्दुस्तान, 
हमने धर्म और मजहब की दीवारें नहीं देखी, 
हमने जात पात का मर्म ना जाना, 
बिना भेद भाव के सबकी सेवा की, 
किसी ने सराहा, किसी ने पलकों पे बिठाया, 
किसी ने थूका तो किसी ने तलवारें भी चलाई, 
किसी ने फूल बरसाये तो किसी ने पत्थर, 
हौसला हमारा तनिक ना डगमगाया, 
क्यूंकि हम हैं सिपाही हिंद-ए-वतन के, 
चाहे तुम सम्मान दो या खेलो हमारे प्राण से, 
खड़े रहेंगे हम शान से लड़ेंगे हम जी जान से, 
ताकि जीता रहे अपना हिन्दुस्तान... 

विपत्ति बड़ी है, सामने खड़ी है, 
हम लगातार लड रहे हैं और लड़ते रहेंगे, 
माना लड़ाई आसान ना होगी, 
जो दे दो तुम ज़रा सा साथ, 
कोई चुनौती इतनी बड़ी ना होगी, 
रहो तुम सुरक्षित घर के अंदर 
हम हैं तुम्हारी रक्षा के लिए हर पल तत्पर, 
जो कहते थे कभी साँस लेने की फुर्सत नहीं, 
आज वक़्त मिला है, जी भर कर जिओ, 
हमारी किस्मत में ना सही, तुम्हें तो मिला है, 
ये परिवार ही तो है जो नसीब वालों को मिला है, 
अपना हर फ़र्ज़ हम निभाएंगे, 
देश को इस बिमारी से बचाएंगे 
ताकि जीता रहे अपना हिन्दुस्तान... 


#SwetaBarnwal 

Wednesday 13 May 2020

Corona warriors...

ऐ Corona warriors...! 
तुम्हें है नमन हमारा... 

माना विपदा बड़ी है, 
सामने मौत खड़ी है, 
हर ओर सन्नाटा फैला है, 
सब घर में दुबके पड़े हैं, 
और तुम बाहर सड़कों पर खड़े हो, 
ताकि सुरक्षित रह सके ये देश हमारा, 
परिवारों से दूर अपने, 
मिलने को भी तरसते रहे, 
सरहद हो या पार सात समंदर, 
या हो कोई शैतान देश के अंदर, 
भारत माँ के प्रहरी तुम, 
हर दुश्मन से ही लड़ते हो, 
हर फर्ज़ को अंजाम देते हो, 
देश रक्षा के ख़ातिर मौत से भी लड जाते हो, 

ऐ Corona warriors...! 
तुम्हें है नमन हमारा... 

हम रहें सुरक्षित घर में अपने, 
तुम दिन रात परिश्रम करते हो, 
तभी तो शायद कहते हैं, 
तुमको विधाता का स्वरुप, 
Corona एक महामारी है, 
जानते हैं ये हम सभी, 
छूने से भी फैलती है, 
हो सकती है तुमको भी ये बीमारी, 
फ़िर भी तुमने हार ना मानी, 
दूर इसे भगाने की तुमने है मन में ठानी, 

ऐ Corona warriors...! 
तुम्हें है नमन हमारा... 

गंदगी से भी यह फैलेगी, 
नहीं किसी को ये छोड़ेगी, 
मित्र नहीं, ना सखा किसी की, 
ये बीमारी सबको ले डूबेगी, 
फ़िर भी तुम डटे रहे, 
सबका कचरा साफ़ करते रहे, 
अड़े रहे तुम अपने पथ पर, 
अपना कर्म करते रहे, 
रहें हम सलामत और देश सलामत, 
तुम साफ़ सफ़ाई करते रहे, 

ऐ Corona warriors...! 
तुम्हें है नमन हमारा... 

चिकित्सा मे माना हम बहुत पीछे थे, 
संसाधनों की कमी बड़ी थी, 
वक़्त था बहुत कम और लड़ाई बड़ी थी, 
नेता है हमारा सक्षम, 
उसके सामने टिक जाए भला 
Corona मे कहाँ दम, 
तुरंत कठोर फैसले लिए, 
सरहदों को सील किया 
देश को एकजुट किया, 
PPE kit, ventilator, robots, hydroxochloroquine, 
बड़े कम समय में सबका उत्पाद कराया, 
विज्ञान, चिकित्सा और प्रौद्योगिकी ने 
मिल कर नया इतिहास रचाया, 

ऐ Corona warriors...! 
तुम्हें है नमन हमारा... 

Lock-down मे जब सारा देश थम सा गया, 
तब भी तुम रुकी नहीं, 
सुस्ता रहें हैं जहां सब लोग घर में, 
तुम फ़िर भी थकी नहीं, 
सब के लिए होगी ये लंबी छुट्टी, 
पर तुम आज भी लगी हुई हो, 
कभी रसोई में, तो कभी बच्चों के देखभाल मे, 
कभी बाहर से आए सामान को धोने मे, 
कभी सबके कपड़ों की धुलाई, 
कभी घर की साफ़ सफ़ाई, 
एक छींक आ जाए किसी को, 
तुम्हारी जान निकल जाती है, 
लेकर काढ़ा और दवाई सेवा में लग जाती है, 
धन्य है घर की नारी, 
तेरे बिना अधूरी है हर लड़ाई और हर तैयारी, 
कोई माने या ना माने 
पर इस जंग में तूने भी है अहम भूमिका निभाई, 

ऐ Corona warriors...! 
तुम्हें है नमन हमारा... 

हर मुश्किल मे तुम सब डटे रहे, 
कोई तुझपर थूक रहा है 
तो कहीं तुझ पर पत्थरबाजी हुई, 
कोई नंगा नाच दिखा रहा है, 
तो कहीं तेरे साथ अश्लील हरकतें हुई, 
किसी ने हाथ काट डाले, 
किसी ने तुझपर तलवारों से वार किया, 
Corona के साथ साथ तू 
इन जुल्मों का भी शिकार हुआ, 
पर फ़िर भी तुम रुके नहीं झुके नहीं, 
ये जंग अभी भी जारी है, 
अपनी पूरी तैयारी है, 
ऐ Corona तुझको अब जाना होगा, 
हम सबने मिल कर ये ठानी है.

ऐ Corona warriors...! 
तुम्हें है नमन हमारा... 

#SwetaBarnwal 


माँ के प्यार की दौलत...

लाख हो भूखी माँ,
फ़िर भी कभी थकती नहीं,
देकर अपने मुह का निवाला 
सन्तान को पालती है माँ, 
सर्वस्व लुटा कर भी अपना,
आह नहीं भरती है माँ,
जाने क्यूँ उस माँ के आँखों से 
आंसू आज थमते नहीं, 
ख़ुद सो जाती है गीले मे,
सन्तान को हर मुश्किल से बचाती है माँ, 
हर लम्हे को वो खास बना देती है, 
अपनी ज़िंदगी का हर एहसास जिसके नाम कर देती है, 
क्यूँ दो पल का भी वक़्त नहीं दे पाता है वो, 
जब वृद्धावस्था में पहुंच जाती है माँ, 
चार चार संतानो को अकेले पाल लेती है माँ, 
फ़िर भी बुढ़ापे मे चार रोटी को तरस जाती है माँ, 
अरे किस्मत भी हार मान जाती है जब, 
माँ की दुआ एक नया रंग लाती है तब, 
माँ ज़मी पर जन्नत का एहसास है,
बच्चों के लिए जैसे वो खुला आकाश है, 
लौट जाती है हर बलाएँ टकरा कर,
सामना जो कभी माँ की दुआओं से होता है, 
थक कर सो जाती है रातें भी अक्सर,
माँ ने तो इन्तजार मे सदियाँ गुज़ारी है, 
मत देना कभी कोई कष्ट उस माँ को, 
जिसने तेरे लिए प्रसव का अनकहा दर्द झेला है, 
रखा है नौ महीने तुझको कोख में, 
जो तेरे इस दुनिया में आने की वज़ह बनी है, 
कई मन्नतें मांगी है उसने तेरे लिए, 
कई रातें गुज़ारी है जागती आंखों से उसने, 
लाख रही बिमार फ़िर भी, 
तेरे लिए किए हैं कई व्रत उसने, 
कितने ही चौखटों पे अपना सर है पटका,
तेरे लिए ख़ुद विधाता से भी लड गई माँ, 
उसे किसी और प्यार की जरूरत नहीं, 
जिसे माँ के प्यार की दौलत मिल गई... 

#SwetaBarnwal 

Sunday 3 May 2020

भारत माँ के चरणों में मैं नित शीश नवाया करती हूँ,
वीर शहीदों की गाथाओं को मैं रोज दुहराया करती हूँ...

#SwetaBarnwal


सोचा ना था...! कभी ऐसा दौर भी आएगा...

सोचा ना था...!
कभी ऐसा दौर भी आएगा...

स्कूल दफ्तर सारे बंद होंगे,
और छुट्टियों का आलम होगा,
सारे होंगे घर में फ़िर भी,
मिलना किसी से सम्भव ना होगा,
कोई घर में कैद होगा,
कोई घर से कोसों दूर होगा,
कोई घर में रहने को मजबूर होगा
कोई घर जाने को तरसेगा,
कोई सड़कों पर ज़िंदगी गुज़ारेगा,
कोई आंखों में रातें काटेगा...

सोचा ना था...!
कभी ऐसा दौर भी आएगा...

वक़्त होगा सबके पास,
पर मिलना होगा दुश्वार सभी का,
सडकें होंगी खाली मगर,
कहीं जाना भी यार ना होगा,
छोटी दूरी, मिलों का सफ़र
तय करना आसान ना होगा,
बच्चे होंगे घर में सारे,
फ़िर भी सूनी होंगी गलियां,
खाली होंगे खेल के मैदान सारे,
बच्चे भी अब चुपचाप रहेंगे,
दूर वालों को बुला ना पाएंगे,
और पास वालों से कभी मिल ना पाएंगे...

सोचा ना था...!
कभी ऐसा दौर भी आएगा...

उपेक्षित हो गए थे जो बुजुर्ग कभी,
उन्हें भरा पूरा परिवार मिलेगा,
मिल बैठेंगे सारे घर वाले,
रामायण और महाभारत का श्रवण होगा,
संस्कारों की गंगा बहेगी,
बच्चे अपनी संस्कृति से जुड़ेंगे,
छूट गया था जो अपनापन
इस पश्चिमीकरण की अंधी दौड़ में,
उन दुर्भावनाओं का भी
फ़िर से कुछ समाधान मिलेगा...

सोचा ना था...!
कभी ऐसा दौर भी आएगा...

चहचहायेंगे पंछी नभ मे,
उनको खुला आसमान मिलेगा,
मछली भी जल में तैरेगी ,
गंगा का जल फ़िर से अमृत होगा,
इंसान कैद होंगे चहारदीवारी मे,
और जीव जंतु स्वच्छंद विचरण करेंगे,
स्वच्छ होंगी हवाएं
प्रकृति भी उन्माद करेगी,
वातावरण में शांति दौड़ेगी,
खिलखिला उठेगी ये धरा,
साफ़ होगा आसमाँ
और सडकें होंगी खाली...

सोचा ना था...!
कभी ऐसा दौर भी आएगा...

समय गुजर रहा है
पर हर कोई चुपचाप खड़ा हैं,
कोई स्तब्ध है
तो कहीं कोई मौन पड़ा है,
तारीखें बदल रही हैं,
पर लम्हों का कोई हिसाब नहीं,
जिस ताकत के बल पर उन्मत्त था इंसान कभी,
आज उनसे ही मात खा रहा है,
चला था देने चुनौती विधाता को,
आज उसी के सहारे ज़िंदगी बचा रहा है,
जिस विज्ञान पर घमंड था उसे,
आज वो भी किसी काम ना आ रहा है...

सोचा ना था...!
कभी ऐसा दौर भी आएगा...

मॉल, सिनेमा, पार्क और होटल
सब पर होंगे ताले,
नहीं कहीं कोई चोरी होगी,
क्यूंकि घर में ही होंगे घर के रखवाले,
बंद हो जाएंगे सड़कों के हादसे,
क्यूंकि बंद होंगे सारे यातायात,
नहीं कोई बिमार होगा,
ना होगा हॉस्पिटल का मीटर चालू,
सादा जीवन होगा सबका,
खायेंगे सब चावल, दाल और आलू,
नहीं कोई चौपाटी होगी
ना कहीं कोई शादी और पार्टी,
ना रस्मों रिवाजों की भेंट चढ़ेगी
कहीं कोई बहु तो कहीं कोई बेटी...

सोचा ना था...!
कभी ऐसा दौर भी आएगा...

अब ना तो सोमवार आने का दुःख
और ना इतवार के चले जाने का ग़म,
ना कोई काम पे जाने का झंझट,
और ना ही किसी छुट्टी का इंतजार,
ना बच्चों का homework का बोझ,
ना ज्यादा कमाने का साधन,
ना ही खर्चने का कोई ज़रिया,
ना ही बॉस की खिच खिच की झल्लाहट,
ज़िंदगी में पहली बार
सबको इतनी लंबी इतवार मिली है,
पहली बार working mother को
अपना छोटा सा संसार मिला है...

सोचा ना था...!
कभी ऐसा दौर भी आएगा...

सालों बाद माँ बेटी ने मिलकर
छत पर लंबी दौड़ लगाई,
सालों बाद बेटी ने माँ का हाथ बटाया,
सालों बाद बेटा
बाप के गोद सर रख कर सोया,
सालों बाद पति पत्नी ने
एक दूजे को दिल का हाल सुनाया,
सालों बाद अमीरों ने
गरीबों के ज़ख्मों पर मलहम लगाया,
सालों बाद घर के सारे लोग
एकसाथ बैठ खाना खाए,
सालों बाद फ़िर से वो दौर आया,
जब लोगों को परिवार का महत्व समझ आया,
सालों बाद एक बार फिर से
हमने अपने संस्कारों को अपनाया...

सोचा ना था...!
कभी ऐसा दौर भी आएगा...



#SwetaBarnwal

किसी रंग से कोई बैर नहीं,
पर भगवा हमको प्यारा है...
हिन्दुत्व रक्षा के ख़ातिर,
हमने सर पर कफन बांधा है...
#SwetaBarnwal

बुजुर्गों का सम्मान... 🙏

बुढ़े माँ बाप या घर में कोई बुजुर्ग,
करते हैं रखवाली घर की जैसे कोई दुर्ग,
ये हैं घर की वो दिवार,
जो अपने आशीर्वाद से रोकते हैं हर वार,
संस्कारों की खान हैं ये,
बच्चों के लिए तो जैसे वरदान हैं ये,
एक मधुर स्मृति होते हैं ये
हमारे सुदृढ़ वर्तमान की नींव हैं ये,
अंधेरी ज़िंदगी में
टिमटिमाते लौ की भांति होते हैं ये,
प्यार इनका कवच
और इनका आशीर्वाद हमारा ढाल बन जाए,
जब कभी भी ज़िंदगी में
हमारे अनचाहा कोई मुकाम आ जाए,
ख़ुद को कभी जलाया,
तब जाकर आज यहां हमें पहुंचाया,
हर मुश्किलें सहीं हमारी ख़ातिर,
हम पर अपना सर्वस्व लुटाया,
ये हैं तो हम हैं,
वर्ना हम क्या और हमारा अस्तित्व क्या,
मत कष्ट पहुंचाना इनको तुम,
मत बनना इनके आंसुओं की वज़ह कभी,
ये हैं घर की वो दीवार
जो निरस्त कर दें काल का भी प्रहार,
ग़र आए जीवन में कोई तूफ़ान,
अपने अनुभव से कराएं नैया पार,
बड़े बूढ़ों का जो सम्मान करे,
उनके जीवन में सुख का संचार रहे...
आज हम पाश्चात्य सभ्यता मे ऐसे रंगे,
भूल के अपनी संकृति वृद्धों का अपमान करें,
बच्चों को आया के हाथ सौंप,
बुढ़े माँ बाप को तिरस्कृत कर वृद्धाश्रम पहुंचाये,
कैसे आए बच्चों मे संस्कार
जब हम ही संस्कार हीन हो जाएं,
जो आज दिखाओगे तुम बच्चों को,
कल तुम भी वही पाने के हकदार बनोगे,
ये वक़्त का पहिया है
चलता ही जाएगा,
जो तू आज बोयेगा,
वो ही कल पाएगा,
बीज बो कर नफ़रत की,
भला सम्मान कैसे पाएगा...
अब भी वक्त है
सम्भल जाओ तुम,
ग़र जीना चाहते हो बुढ़ापे मे शान से,
तो जीने दो अपने बुजुर्गों को सम्मान से...
आओ मिल कर आज ये संकल्प करें,
कभी ना हो घर में अपमान बुजुर्गों का,
मिट्टी के ये बर्तन नहीं
जो जब जी चाहा फोड़ दिया,
ये कोई जानवर भी नहीं,
जो रस्ते पर मरने छोड़ दिया,
लहू देकर अपना जिन्होंने पाला हमको,
भला क्यूँ तिरस्कृत हो बुढ़ापे मे वो,
वृद्धाश्रम मे वो नन्ही किलकारी को तरसे,
और घर में बच्चे संस्कारों को तरसे,
पैसों की चकाचौंध मे इंसानों ने रिश्ते खोए,
हर मुसीबत आई जब भी बुढ़ापा आया,
क्यूँ बिसराते जा रहे हैं बच्चे,
अपने ऊपर किए अहसान बुजुर्गों का,
बड़ी किस्मत से मिलता है यारों,
प्यार और आशीर्वाद बुजुर्गों का...


#SwetaBarnwal

Friday 1 May 2020

ओ कोरोना...!

ओ कोरोना...!
आख़िर तुझे मैं क्या नाम दूँ...
मौत कहूँ या जिंदगी का नाम दूँ,
अपनों से दूरी की वज़ह कहूँ
या ख़ुद को ख़ुद से मिलवाने का ज़रिया कहूँ,
दर्द कहूँ या कह दूँ दवा तुझे,
हवाएं दूषित थी,
ज़िंदगी अस्त व्यस्त थी,
जानवर और पंछी त्रस्त थे,
इंसान घमण्ड मे सारे मदमस्त थे,
गाड़ियों और फैक्ट्रियों का शोर था,
प्रदूषण चारो ओर था
अपराध घनघोर था,
सब के मन में चोर था
नदियों का पानी मैला था,
हवाओं में फैला ज़हर था,
रिश्तों में उसका दिखता असर था,
किसी के पास किसी के लिए ना वक़्त था,
हर कोई अपने मे ही बस व्यस्त था,
पैसों की दौड़ थी,
भागने की बस होड़ थी,
सब को ख़ुद पे गुमान था,
विज्ञान पर अभिमान था
जंगलों को काट रहा था,
नदियों की धारा मोड़ रहा था,
प्रकृति के साथ कर रहा खिलवाड़ था,
गगनचुंबी इमारतों से
आसमान को दे रहा चुनौती था,
इंसान को अपने सामर्थ्य पर
हो गया घमण्ड था,
तभी अचानक एक छोटा सा
Virus औचित्य मे आया,
जिसने ला कर रख दिया
सारी दुनिया को घुटनों पर,
दिखा दिया औकात इंसान को,
मौत का खौफ़ यूँ हर ओर छाया,
विज्ञान भी तब कुछ काम ना आया,
क़ैद करने चला था जो पूरे संसार को
कैद हो कर रह गया वो
अपने ही घर की चारदिवारी मे,
आज नदियां लहरा रही हैं,
पंछी चहचहा रहे हैं,
हवाओं में ताजगी है,
ज़िंदगी में सादगी है,
जीव जंतु मस्त है,
प्रकृति भी आज स्वस्थ है,
धरा आज ख़ुशहाल है,
सृष्टि भी आज निहाल है.
समझ नहीं आता
ओ कोरोना...!
आख़िर तुझे मैं क्या नाम दूँ...
तुझे ज़िंदगी कहूँ
या कोई मौत का पैगाम हो तुम,
कोई ख़ुशी हो
या संहार का संचार हो तुम,
सृष्टि का संतुलन हो
या महाकाल का काल हो तुम,
अपनों का विछोह हो
या अपनों का समावेश हो तुम,
कोई भ्रांति हो
या विश्व शांति का पैगाम हो तुम,
कोई रोग हो,
या इंसानी रोगों का उपचार हो तुम,
ओ कोरोना...!
आख़िर तुझे मैं क्या नाम दूँ...


#SwetaBarnwal


Sunday 26 April 2020

हाँ मैं हिन्दू हूँ... 🚩

मैं हिन्दू हूँ,
भारत माँ के मस्तक का
मैं एक चंद्र बिंदु हूँ,
शोभा हूँ, श्रृंगार हूँ,
भारत का मैं गौरव हूँ,
अतीत हूँ, वर्तमान हूँ,
मैं ही भारत का भविष्य हूँ

हाँ मैं हिन्दू हूँ...

हर वक़्त अमन और चैन की बात मैं करता रहता हूँ,
हिन्दू मुस्लिम भाई भाई का राग अलापता रहता हूँ,
हजारों बार लुटने पर भी और लुटने की हिम्मत रखता हूँ,
Secular बन अपने ही भाई बहनों को मैं डसता हूँ,

हाँ मैं हिन्दू हूँ...

वो घर में मेरे आग लगाए
और मैं वसुधैव कुटुम्बकम की बात करता हूँ,
वो आतंकवाद का नंगा नाच करते हैं
और मैं सौहार्द की ढाल रखता हूँ,
कभी पेट्रोल बम तो कभी Corona बम लेकर आते हैं
और मैं भीगी बिल्ली सा कहीं कोने में छुप जाता हूँ,

हाँ मैं हिन्दू हूँ...

धमनियों मे बह रहा खून मेरा अब पानी हो गया है,
घुट घुट कर जीने का ही नाम जवानी हो गया है,
एक ललकार पर निकल पड़े सभी ये ख्याल अब बेमानी हो गया है,
बप्पा रावल की तलवार बस एक कहानी हो गया है

हाँ मैं हिन्दू हूँ...

धर्म रक्षा के ख़ातिर जो प्राण लुटाना जानते थे,
आज वो कश्मीरी मात्र शरणार्थी हो गए हैं,
हमारे धर्म का मजाक उड़ता रहा और मैं मौन रहा,
धर्म निरपेक्ष की दौड़ में बस मैं अकेला दौड़ पड़ा,

हाँ मैं हिन्दू हूँ...

“अहिंसा परमो धर्मः" इतना तो मुझको याद रहा
"धर्म हिंसा तथैव च:” ना जाने ये कैसे भूल गया,
वो अफजल, अख़लाक़ और कसाब का चारा हमे बनाते रहे,
देश धर्म की बलिवेदी पर ना जाने क्यूँ अब तक मैं मौन रहा,

हाँ मैं हिन्दू हूँ...

मर जाये ग़र कभी धर्म देश का,
कहते हैं वो देश भी ज़िन्दा नहीं रहता ज़मी पर,
हाँ कल तक थोड़ा मदहोश था मैं,
अपने ही ख्यालों में गुम बैठा हुआ सा,
पर मत सोचना कि मैं सोया हुआ हूँ,
बस तेरे क्रूर चालों से थोड़ा आहत पड़ा हूँ

हाँ मैं हिन्दू हूँ...

जाग उठा हूँ आज मैं, अब तुम्हें जगाने आया हूँ,
हमको काफिर कहने वालों को मैं आज सुलाने आया हूँ,
बुजदिल थे वो जो देश धर्म को छोड़ कश्मीर से भागे,
हस्ती मिट्टी मे मिल जाती उनकी ग़र सौ भी हथियार उठाते,

हाँ मैं हिन्दू हूँ...

अरे वो भी हिन्दू थे जिसने मातृभूमि पर अपने लाल लुटाये,
लड़ते लड़ते मिल गए मिट्टी में पर शीश नहीं झुकाए,
गोरी, गज़नी, अकबर, बाबर के अत्याचारों का प्रहार हूँ मैं,
पृथ्वीराज, प्रताप, शिवा का संबल इतिहास हूँ मैं,

हाँ मैं हिन्दू हूँ...

ना जाने कितने ही ज़ुल्म सहे है मैंने,
दिल पर लगे ज़ख्म कैसे मैं दिखलाऊँ,
क्या क्या सहा है मैंने ये कैसे बतलाऊँ,
ना जाने कितनों ने ही लुटा है मुझको बारी बारी,
फ़िर भी देखो अब तक मैंने ना हिम्मत हारी,

हाँ मैं हिन्दू हूँ...

#SwetaBarnwal

Saturday 25 April 2020

हिन्दुत्व... 🚩

अब तो जागो हिन्दुओं, कि मैं तुम्हें जगाने आई हूँ...

अरे अब तो जागो ऐ वीर सपूतों,
तोड़ो तुम आलस की बेड़ी को,
आन पड़ी है विपदा फ़िर से,
त्यागो तुम अपनी चिर निद्रा को,
भरो ऐसा ओज तुम अपने आने वाली पीढ़ी मे,
भारत माँ के शान के ख़ातिर चढ़ जाए वो बलिवेदी पे,
दिखे नहीं अब द्रोही ध्वज, भगवा ही अपनी शान है,
आतंकी टोली का अब रहे नहीं नाम - ओ-निशान है

अब तो जागो हिन्दुओं, कि मैं तुम्हें जगाने आई हूँ...

जंग पडी जो तलवारों मे
उस पर अब धार चढ़ानी है,
आंख उठे जो हिन्दुत्व पे कोई,
उसको औकात दिखानी है,
कहाँ गई वो ओज प्रताप की,
जिसने अकबर को धूल चटाई थी,
कहाँ गई वो लक्ष्मी बाई,
जो चंडी बन दुश्मन पर लहराई थी,
कहाँ गई वो भगत, सुखदेव और राजगुरू की टोली है,
जिसने संसद में आग लगा कर दुश्मनों मे हड़कंप मचाई थी,
मचा हुआ है हाहाकार देश में,
और तूने है सर पर चादर तानी,

अब तो जागो हिन्दुओं, कि मैं तुम्हें जगाने आई हूँ...

करते रहो तुम बातेँ गंगा जमुना तहजीब की,
और सिखाओ अपने बच्चों को हिंदू मुस्लिम भाई भाई,
ये बम के गोले फेंकेगे, तुम हाथ जोड़े प्रणाम करो,
अपनी कायरता का तुम नतमस्तक हो सम्मान करो,

अब तो जागो हिन्दुओं, कि मैं तुम्हें जगाने आई हूँ...

आख़िर कब तक तुम बातेँ करोगे भाई चारे और प्रेम की,
कब तक ईद की मुबारक बात देने उसके जाओगे,
कब तक love zihad मे अपनी बहन बेटियों को नीलाम करोगे,
कब तक आतंकवाद का नंगा नाच तुम देखोगे,
आख़िर कब तक भारत के टुकड़े करने वालों को हम सर का ताज बनाएंगे,

अब तो जागो हिन्दुओं, कि मैं तुम्हें जगाने आई हूँ...

कब तक मुस्लिम तुष्टीकरण के ख़ातिर बलि तुम्हारी दी जाएगी,
कब तक 30% मुस्लिम वोट बैंक 70% हिन्दुओं को धूल चटाएंगे,
आख़िर कब तक हम नेताओं के हाथों की कठपुतली बन कर नाचेंगे,
भारत पाक के मैच में वो पाक के जीत का जश्न मनाता है,
हमारे टैक्स के पैसों से देखो वो अपनी आबादी बढ़ाता है,

अब तो जागो हिन्दुओं, कि मैं तुम्हें जगाने आई हूँ...

भूल गए क्या तुम भारत माँ के उन टुकड़ों को,
जब भी माँ का अंग कटा, एक नया इस्लामिक राष्ट्र बना,
लगता है भूल गए तुम 47 के उस बंटवारे को,
पूरी ट्रेनें भर कर आई थी हिन्दुओं की लाशों से,
अरे छोड़ो उन दिनों की बातों को, मैं आज की बात बताती हूँ,
खाते हैं ये भारत का और गुणगान पाक का गाते हैं,

अब तो जागो हिन्दुओं, कि मैं तुम्हें जगाने आई हूँ...

जिस थाली में खाते हैं ये उसी मे थूक कर फिर जाते हैं,
भारत माँ की छाती पर ये आतंकवाद फैलाते हैं,
जब भी मौका मिलता है ये विद्रोही हो जाते हैं,
भारत के टुकड़े करने का ये ख्वाब सजाये फिरते हैं,

अब तो जागो हिन्दुओं, कि मैं तुम्हें जगाने आई हूँ...

महादेव का आह्वान करो, वाणी मे अपने ओज भरो,
दुष्टों से पट जाए धरती, महाकाल सा काल बनो,
कोलाहल मच जाए जग में ऐसी तुम हुंकार भरो,
भारत के टुकड़े करने वालों का अब तुम स्वयं संहार करो,
गद्दारों के लहू से रक्त रंजीत हो जाए ये भूमि ऐसा तुम प्रहार करो

अब तो जागो हिन्दुओं, कि मैं तुम्हें जगाने आई हूँ...

#SwetaBarnwal

Saturday 4 April 2020

COVID-19

जीवन देने वालों को भी
ये मौत बांटते फिरते हैं,
किस नस्ल की पैदाइश हैं ये
बुरे दौर में भी ये आतंकवाद फैलाए चलते हैं,

सारी दुनिया जिस virus के सामने
घुटने टेक कर बैठ गई,
हर विकसित देश भी जिस के आगे हुआ आज लाचार है,
लाशों का देखो कैसे चारों ओर लगा हुआ अंबार है,

भारत भी ईन सबसे भला
कहाँ रहा अछूता था,
स्थिति विकट ना हो जाए
सरकार ने तुरंत कदम कड़े उठाए
दिया आदेश lock-down का
आख़िर देश को बचाना था
नैया भँवर मे डोल रही थी
सकुशल पार लगाना था
स्थिति विकट थी, संसाधन सीमित
किया अनुमोदन देशवासियों से
करे अनुपालन कुछ बातों का
Social distancing का ध्यान रखें,
हाथों को हर पल sanitize करें,
ना निकलें घर से बाहर तब तक,
जब तक ना हो अति आवश्यक,
निकलो जब तुम घर से बाहर,
मुह पर मास्क और हाथों में दस्ताने हो
छोटी छोटी बातों पर जो ध्यान दिया जाता
मुमकिन है हर बाजी हम जीत ही जाते ,

कठिन ना था ये अमल करना,
आख़िर अपनी जिंदगी का था सवाल,
फ़िर क्यूँ आख़िर कुछ लोगों ने मचाया इस कदर बवाल,
जमात मे शामिल हुए, गुटबाजियां की,
चोरी छुपे मस्जिदों में पनाह ली
सरकार की हर रणनीति को दरकिनार किया,
Social gathering को बढ़ावा दे
इस virus को फैलने का मौका दिया,

और तो और जब आए ये सरकार की नज़र में,
हर ओर फ़िर भयानक कोहराम मचाया,
कहीं किसी पे थूका, तो कहीं किसी को पीटा,
Nurses से अश्लीलता की, डॉ की धुलाई की,
देश के प्रहरी को पीटा, मर्यादा की हर सीमा लांघी,

आख़िर मकसद क्या है इनका,
क्यूँ मौत का बेच रहे सामान हैं ये,
क्या ये zehad के अंगार नहीं,
क्या ये मानव बम का विस्तार नहीं,
क्या यही सिखाता है मजहब इनका,
क्या इनका कोई उपचार नहीं...

आख़िर कब तक यूँ ही हम सहते जाएंगे,
कब तक हम मुह की खायेंगे,
आख़िर कब तक हम चुप चाप रहेंगे,
कब तक ये मौत का नंगा खेल रचेंगे,
इनकी हिम्मत तब तक है
जब तक हम ख़ामोश खड़े हैं
जिस दिन हम हिम्मत कर आगे बढ़ जाएंगे
उस दिन Corona के साथ अंत इसका भी हो जाएगा...

जय श्री राम.... 🙏🚩

#SwetaBarnwal 

Sunday 15 March 2020

इन आँखों में कुछ अरमान जगा दिया करते हैं,
चुपके से वो हमारी नींदें चुरा लिया करते हैं,
इतनी बार तो वो साँसें भी न लेते होंगे,
जितनी बार हम उनको याद किया करते हैं...

#SwetaBarnwal
इन आँखों में कुछ अरमान जगा दिया करते हैं,
चुपके से वो हमारी नींदें चुरा लिया करते हैं,
इतनी बार तो वो साँसें भी न लेते होंगे,
जितनी बार हम उनको याद किया करते हैं...

#SwetaBarnwal
हम तो खुशबु हैं जनाब,
हवाओं से उलझना फितरत है हमारी...
बिखरने का डर फूलों को होगा,
बिखर कर निखरने की आदत है हमारी...

#SwetaBarnwal
फूलों को डर है कि
वो मुरझा कर गिर जाएंगे,
हम तो खुशबु हैं #श्वेता,
हवाओं में बिखरे तो निखर जाएंगे...

#SwetaBarnwal 
राह-ए-वफ़ा में हम को ख़ुशी की तलाश थी,
दो कदम ही चले थे कि हर कदम पे रो पड़े।

#SwetaBarnwal 
हर बात महसूस हो जाए #श्वेता
मुमकिन तो नहीं,
वो ख़ुद इज़हार-ए-मोहब्बत कर जाएं
तो ऐतराज़ किसको है...

#SwetaBarnwal 
जितनी खूबसूरती से लोग रिश्ते बनाते हैं #श्वेता,
उतनी ही शिद्दत से क्यूँ लोग यहां भूल जाते हैं...

#SwetaBarnwal 

बेटा और बेटी...

बेटे की तरह बेटी भी
नौ महीने माँ की कोख में पलते हैं
बेटे की तरह बेटी भी
बाबा की उंगली थाम के चलते हैं,
होती है दोनों की सूरत एक जैसी
होती है दोनों ही मुरत एक जैसी,
बेटे की तरह बेटी भी
माँ की गोद में सोते हैं,
बेटे की तरह बेटी भी
हंसते गाते और रोते हैं,
करते नादानियाँ दोनों एक जैसी
करते मनमानियाँ दोनों एक जैसी,
बेटे की तरह बेटी भी
नाम रौशन करती हैं,
बेटे की तरह बेटी भी
कुल का मान रखती है,
करते अठखेलियाँ दोनों एक जैसी
करते शैतानियाँ दोनों एक जैसी,
बेटा पिता का साया है
तो बेटी माँ की परछाई है,
भला माँ बाप की सेवा में
बेटी कब पीछे आई है,
बेटा अगर गुमान है
तो बेटी भी स्वाभिमान है,
फ़िर भी क्यूँ नहीं होती है
दोनों की किस्मत एक जैसी,
फ़िर भी क्यूँ कोख में ही
खत्म कर दी जाती है इसकी कहानी,.
क्यूँ बेटी के जन्म का मातम मनाते हैं लोग,
क्यूँ उसे बोझ समझ दूर फेंक देते हैं लोग.
बेटा ग़र मान है तो बेटी कौन सा अपमान है,
क्यूँ नहीं समाज देता इन्हें इज्ज़त समान है...


#SwetaBarnwal

Friday 13 March 2020

ख़ास हूँ मैं...

कैसे कह दूँ अब जीने की चाह नहीं इस दिल में,
ना जाने कितने ही लोगों के जीने की वज़ह हूँ मैं...
कैसे रोक लूँ अपनी सासों को मैं,
ना जाने कितने ही दिलों की धड़कन हूँ मैं,
कैसे कह दूँ कि अब ज़िंदगी से हार बैठी हूँ मैं,
जबकि कितने ही लोगों की उम्मीद हूँ मैं,
ख़ुद के लिए एक मुट्ठी ख़ुशी भी ना ख़रीद पाई कभी,
फ़िर भी ना जाने कितनों के ख़ुशी की वज़ह हूँ मैं,
होंठों पर खोखली सी हंसी समेटे हुए हरदम,
ना जाने कितने ही चेहरों की मुस्कान हूँ मैं,
मर चुका है दिल से सारे अह्सास जिसके,
औरों के जीवन में महकती हूँ मैं अह्सास बनके,
कुछ भी तो नहीं है ख़ास मुझमे,
फ़िर भी ना जाने कितनों के लिए ख़ास हूँ मैं...


#SwetaBarnwal


Saturday 7 March 2020

नारी हूँ मैं कोई श्राप नहीं...

तोड़ के हर दर-ओ-दिवार,
एक दिन मैं उड़ जाउंगी,
इस दुनिया से दूर कहीं
एक नया जहां बनाऊँगी,
लाख लगा लो पहरे मुझपर,
आसमाँ को छू कर मैं दिखलाउंगी,
तोड़ के सारे बंधन मैं
फुर्र से उड़ जाउंगी,
बांध दो ईन पैरों में चाहे
रस्मों रिवाज की जंजीरें,
बदल के तेरी दुनिया मैं
नया इतिहास रचाउंगी,
अपनी मेहनत और हिम्मत से,
अपनी पहचान बनाऊँगी,
जो नहीं हुआ है पहले कभी,
वो करके मैं दिखलाउंगी,
लड़की हूँ कोई बोझ नहीं,
ये सबको अब समझाउंगी,
खड़ी कर दो चाहे कितनी भी ऊंची
परंपराओं की दिवार तुम,
या बिछा दो कितने भी कांटे
मेरी राहों में तुम,
नौ महिने कोख में रख कर तुझको
जो दे सकती है जीने का अधिकार तुझे,
फ़िर सोचो ग़र आ जाए वो ज़िद पर अपने
क्या नहीं फ़िर कर सकती है वो,
नारी हूँ मैं कोई श्राप नहीं,
छीने कोई हक़ मेरा
ये किसी को अधिकार नहीं...

#SwetaBarnwal


बस एक दिन मे ना बांधों तुम नारी के सम्मान को,

गर दे सकते हो तो दे दो पंख उनके स्वाभिमान को...

महिला दिवस के एक दिन के लिए जो है वंदनीय,

भला क्यूँ रहे वो 364 दिन निंदनीय...

#SwetaBarnwal 

Saturday 1 February 2020

आज़ादी..., अभिव्यक्ति की...

आज़ादी..., अभिव्यक्ति की...
बातों की... विचारों की...
कुछ कहने की आज़ादी
सब झेलने की आज़ादी
माना भारत देश के संविधान में
19(1) के तहत दी है सबको
आज़ादी..., अभिव्यक्ति की...
पर इसका मतलब क्या है
तुम देश विरोधी नारे दोगे,
भारत माँ के सीने पर तुम
रोज आतंकवाद का खेल रचोगे,
खुलवा आधी रात को संसद के दरवाजे
तुम आतंकवादियों के मसीहा बनोगे,
क्या यही है तुम्हारी
आज़ादी..., अभिव्यक्ति की...
बलात्कारियों की तुम वक़ालत करोगे
नाबालिग कह कर उसको
मशीन और पैसे दोगे
अरे सोचों एक बार ज़रा तुम
नाबालिक होकर जिसने
किया ऐसा कुकृत्य है
बालिग़ हो गया जो वो तो
कितना विध्वंश मचायेगा,
ना जाने कितनी निर्भया
अभी और लूटी जाएगी,
ना जाने कितने ही माँ बाप यहाँ
इन्साफ़ के इंतजार में मर जायेंगे,
अन्याय का यूं साथ देने वालों
क्या यही है तुम्हारी
आज़ादी..., अभिव्यक्ति की...
हर घर से अफजल पैदा करने वाले को
देश का हीरो बना दिया,
भारत के टुकड़े करने वालों को
भौंकने को ज़िंदा छोड़ दिया,
हर देश द्रोही के साथ यहां
खड़ा ये मानवाधिकार आयोग है,
न्यायपालिका यहाँ की मौन है,
न्याय वयवस्था बड़ी कमजोर है,
देश के कानून को रौंदने वालों
क्या यही है तुम्हारी
आज़ादी..., अभिव्यक्ति की...
लूटी जो अस्मत लड़की की
तुम रहे ख़ामोश सदा,
हैदराबाद के एक एनकाउन्टर मे
मुर्दे भी सारे बोल पड़े,
पहना कर कानून के आँखों में काली पट्टी
बहुत खेली तुमने आँख मिचोली,
अफजल, कन्हैया, ओवैसी
के आतंकवाद के खुले ऐलान
पे चुप्पी साधे लोग,
गोपाल की एक गोली पर
विधवा विलाप मचाने वाले,
क्या यही है तुम्हारी
आज़ादी..., अभिव्यक्ति की...
कहीं तिरंगे का अपमान हुआ,
कहीं गौ माता का वध हुआ,
कभी जन गण और वंदे मातरम का
खुल कर विरोध हुआ,
राष्ट्र गान के सम्मान में जिनको
खड़े होना भी गंवारा नहीं,
बात जहां भी हो देशप्रेम और हिन्दुत्व की
सैकड़ों फन मचलने लगते हैं
आता है क्रोध बहुत तब जब ऐसी हालत में
ज़हर उगलने वाले पत्रकर मौन हो जाते हैं
देशद्रोह भरा है मन में जिनके
और अपनी बातों से सबको ये लड़वाते है
क्या यही है तुम्हारी
आज़ादी..., अभिव्यक्ति की...
मैं कहती हूँ जब खुले गगन मे
तिरंगा खुल कर लहराएगा
जब घर घर में गौ माता पूजी जाएगी,
जब घर से निकली बेटी
साँझ ढले घर को सुरक्षित आएगी,
तब सही मायनों में होगी यारों
आज़ादी..., अभिव्यक्ति की...
जब देश की कोई गली
इतनी भी सम्वेदनशील ना हो
कि वंदे मातरम के नारे से
कोई चंदन गुप्ता मारा जाए,
भारत के टुकड़े करने वालों को
टुकड़ों में बांटा जाए,
तब सही मायनों में होगी यारों
आज़ादी..., अभिव्यक्ति की...
जब सरहद के वीर सिपाही
गली के गुंडे ना कहलाएं,
आए जो इस देश पर कोई मुसीबत
सब मिल कर यलगार लगाए,
जब जाति धर्म से ऊपर उठ कर,
देश की रक्षा सबका ईमान बन जाए,
तब सही मायनों में होगी यारों
आज़ादी..., अभिव्यक्ति की...
जब कश्मीरी पंडितों को
पुनर्वास करवाया जाएगा,
जब शाहीन बाग में बरस रही अल्लाह की मेहर
भूखों का निवाला बन जाएगी,
तब सही मायनों में होगी यारों
आज़ादी..., अभिव्यक्ति की...
जब हम अपनी सभ्यता और संस्कृति को
फ़िर से गले लगाएंगे,
जिन्हें भारत से प्यार नहीं,
उनको भारत में रहने का अधिकार नहीं,
भंग करे जो शांति यहां की
उन्हें जन्नत की सैर कराएंगे,
अन्याय का साथ जो दे यहां
उन्हें उनकी औकात दिखाएंगे,
देशद्रोहियों को सबक सिखाने के ख़ातिर
करें कानून को सख्त जरा जो,
तब सही मायनों में होगी यारों
आज़ादी..., अभिव्यक्ति की...


#SwetaBarnwal





Monday 27 January 2020

भारत; एक नई पहचान...

लाशों की इस नगरी में
अरमान सजाने निकली हूँ...
भारत को फ़िर से एक नई
पहचान दिलाने निकली हूँ...

सदियों से जो सोये हुए हैं
उनको आज जगाने निकली हूँ,
भारत माँ की बेटी मैं
मिट्टी का कर्ज चुकाने निकली हूँ,

लाशों की इस नगरी में
अरमान सजाने निकली हूँ...

छोड़ो भी ये तीज त्योहार,
फा़नदो अपने घर की चार दीवार,
अब तोड़ भी दो अपनी ख़ामोशी को
छोड़ो अपनी मदहोशी को,
कब तक गद्दारों को हम सर का ताज बनाएंगे,
कब तक झूठे भाई चारे की यूँ रित हम निभाएंगे,
आख़िर कब तक वीरों की कुर्बानी यूँ ही जाया जाएगी,
अब तो जागो साथियों कि मैं तुम्हें जगाने निकली हूँ

लाशों की इस नगरी में
मैं अरमान सजाने निकली हूँ...

खून खौलता है अब मेरा जब लहू देखा वीर जवानों की,
ना जाने सूनी हो गई गोद कितने ही माओं की,
उजड़ गया सुहाग ना जाने कितने ही नव वधुओं का,
नाथ छिन गया ना जाने कितने ही बच्चों का,
देख ऐसी दुर्दशा देश की मैं ललकार लगाने निकली हूँ,

लाशों की इस नगरी में
मैं अरमान सजाने निकली हूँ...

कौन कहता है कि चरखे ने आज़ादी दिलाई है,
क्या पागल थे वो लोग जिन्होंने सीने पे गोली खाई है,
मांगने से अगर मिल जाती स्वतंत्रता,
तो यूँ माँ भारती का आँचल लहू से लाल नहीं होता,
जो भ्रांति फैली हुई है यहाँ सभी के मन में,
अपनी आवाज़ से मैं उसे मिटाने निकली हूँ,

लाशों की इस नगरी में
मैं अरमान सजाने निकली हूँ...

टुकड़ों में माँ भारती को आज उन्हीं के सपूत करने को तैयार है,
आतंकवाद की डगर पे देखो सब चलने को तैयार हैं,
अपनों के हाथों में ही खंजर है कोई नहीं यहाँ मददगार है,
लूटने को सब बैठे हैं यहां कोई नहीं पहरेदार है,
छोड़ घर की दहलीज़ आज मैं
अपनी कलम से यलगार लगाने निकली हूँ,

लाशों की इस नगरी में
मैं अरमान सजाने निकली हूँ...

सत्ता के लिए देश बांटने वालों की है ये ज़मीं नहीं,
मातृ भूमि पे जो मर मिटे उनकी ये फुलवारी है,
आतंकवाद को उखाड़ फेंकने की अब हमने ठानी है,
अपने मे छुपे हुए गद्दारों की ख़तम अब हर कहानी है,
मातृभूमि की रक्षा के ख़ातिर मैं अलख जगाने निकली हूँ,
ज़िंदा लाशों मे अब मैं अंगार भरने निकली हूँ...

लाशों की इस नगरी में
मैं अरमान सजाने निकली हूँ...

भारत को एक बार फिर से विश्व गुरु बनाने निकली हूँ,
भूल चुके जो बात सभी वो सबको याद दिलाने निकली हूँ,
इस मिट्टी का मोल सभी को मैं समझाने निकली हूँ,
धूमिल पड़ गई जो छवि इसकी मैं उसे संवारने निकली हूँ,
माँ भारती की बेटी मैं आसमाँ मे भगवा लहराने निकली हूँ...

लाशों की इस नगरी में
मैं अरमान सजाने निकली हूँ...

आजादी के इस पावन अवसर पर ये  अह्सास जगाने निकली हूँ, 
असंख्य बलिदानों के बाद मिली है जो उसको सम्मान दिलाने निकली हूँ, 
चरखे और लाठी से आजादी कब मिली है किसी को, 
सीने पर गोली खाई थी वीरों ने तब जाकर ये आज़ादी पाई है, 
खैरात मे नहीं मिलती है आजादी ये सबको याद दिलाने निकली हूँ... 

लाशों की इस नगरी में
मैं अरमान सजाने निकली हूँ...
भारत माँ को फ़िर से एक नई
पहचान दिलाने निकली हूँ...

#SwetaBarnwal

Wednesday 22 January 2020

कौन कहता है कि हमें आज़ादी चरखे ने दिलाई है,
बेवकूफ़ थे क्या वो लोग जिन्होंने अपने सीने पे गोली खाई है...
मांगने से तो एक तिनका भी हासिल नहीं होता यहां,
फ़िर किसने यहां ये झूठी अफ़वाह  फैलाई है ...
जय हिंद... 🙏🚩

#SwetaBarnwal 

Friday 10 January 2020

ज़िंदगी...,

अपनी ज़िंदगी की आज मैं किस्से सुनाता हूँ,
बीते हुए लम्हों की उसमें मैं मोती पिरोता हूँ,
कभी मेरी ज़िंदगी में खुशियों का तराना था,
आज तो बस खुशियों का बहाना है,
खुल कर हंसा करता था कभी,
आज बस दिखावे की हंसी रखता हूँ,
आँसुओं को अपने पलकों के पीछे छुपाता हूँ,
दर्द को अपने मैं इस दुनिया से छुपाता हूँ,
ना चाहूँ फ़िर भी बेबाक हंसता हूँ,
इस हंसी के पीछे हर तकलीफ़ छुपाता हूँ,
ख़ुशी बांट कर ख़ुद के लिए ग़म संजोता हूँ,
महफ़िल में रह कर भी ख़ुद को तन्हा पाता हूँ,
अपनों के बीच भी बेगाना बना रहता हूँ,
जिसे भी चाहा उससे दूर हुआ जाता हूँ,
अकेले जब भी होता हूँ
बीते लम्हों को मैं याद करता हूँ,
ज़िम्मेदारियों के बोझ ने मुझको बुढ़ा बना दिया,
पर आज भी दिल में अपने मैं बचपना संजोता हूँ,
बहुत दूर आ चुका हूँ मैं चलते चलते,
अब थोड़ी देर के लिए मैं सुस्ताना चाहता हूँ,
कोई सम्भाल ले मुझको अपने पनाहों मे,
अब और नहीं ज़िंदगी से मैं टकराना चाहता हूँ...


#SwetaBarnwal 
लगा के आग ख्वाहिशों को दिल को एक पल का सुकून ना आया,
जला जो आशियां किसी का करार मिल गया...

#SwetaBarnwal 

ऐ विधाता...!

 ऐ विधाता...! ना जाने तू कैसे खेल खिलाता है...  किसी पे अपना सारा प्यार लुटाते हो, और किसी को जीवन भर तरसाते हो,  कोई लाखों की किस्मत का माल...