कविता कैसी लगी, अपनी राय अवश्य दें... 🙏🏻
बरसों बीत गए ख़ुद को आईने में निहारे हुए,
सब को ज़िंदगी के गुर सिखाने वाली
आज अरसा गुज़र गया ख़ुद के साथ वक़्त बिताए हुए,
जिस बात के लिए कल तक तुझे समझाया करती थी मैं,
आज ख़ुद ही उन उलझनों मे उलझ कर रह गई हूँ माँ...
क्या क्या ना सोचा था, क्या क्या ना चाहा था,
दुनिया को हर कदम पर जिसने ठेंगा दिखाया था,
आज दुनिया आगे निकल गई मैं ख़ुद पीछे रह गई माँ,
हर वक़्त देखा करती थी तुझे दुनियादारी मे उलझे हुए,
जीना नहीं आता तुझे यही सोचा करती थी माँ,
सब के लिए खुशियां खरीदने मे आगे,
ना जाने क्यूँ ख़ुद के लिए कंजूसी करती है माँ,
आज देखती हूँ ख़ुद को तो तुझको ही पाती हूँ माँ...
कभी कहीं जो घूमने जाना हुआ,
बस यूँ जूड़ा बना निकल जाती थी माँ,
कभी तुझको फुर्सत से संवरते नहीं देखा,
चिढ़ सी तो जाती थी तुम्हारे इस जल्दबाजी पे मैं,
आज दफ्तर जाते मैं भी उसी तरह बालों के जुड़े बना लेती हूँ,
तेरी ही तरह कुछ कुछ मैं भी घर सम्भाल लेती हूँ माँ...
ना कभी ख़ुद का होश रहता था तुझे,
हम सब के लिए एक पैर पे सदा खड़ी रहती थी तू,
सब के मुह का स्वाद बना रहे,
इस हड़बड़ाहट मे हाथों को भी जला लेती थी तू,
कई बार झुंझला जाती थी मैं,
बिलकुल ख्याल नहीं रखती हो अपना,
सुबह जागने से लेकर सोने तक क्यूँ भागते रहती हो माँ,
आज उन सवालों से ख़ुद को ही घिरा पाती हूँ माँ...
कभी जो अगर घर में कोई मेहमान आ जाए,
या फिर हो कोई तीज त्योहार,
रसोई से बाहर आना जैसे दुर्लभ हो जाता था तुम्हारे लिए,
कभी सबके साथ फुर्सत के पल बिताते देखा नहीं तुझको,
कभी गीले बालों को धूप में बैठ सूखाते नहीं देखा,
कभी जी खोल कर हंसते मुस्कराते नहीं देखा तुझको,
कभी अपनी ख्वाहिशों के लिए कुछ करते नहीं देखा तुझको,
आज जब ख़ुद थक कर बैठती हूँ तो कुछ कुछ तुम जैसी ही लगती हूँ माँ...
महंगे कपड़े और जेवर भूल बैठी तुम,
ताकि तेरे बच्चों को मिले खुला आसमान,
सोचती थी कि तुम्हें ज़िंदगी जिनी नहीं आती,
तुम्हें सजना संवारना नहीं आता,
तुम्हारे कोई सपने नहीं, ना ही कोई चाहत है तुम्हारी,
आज सोचती हूँ तो आँखों मे दो बूंद चमक उठते हैं,
ना जाने कब से मैं खुल कर हंसी नहीं,
सोचती हूँ ये जब तब तुम जैसी ही फीकी लगने लगती हूँ माँ...
हंस कर दो प्यार के बोल कोई बोल जो दे,
इस तपते मन के रेगिस्तान में अपनेपन का कोई भाव जो भर दे,
मेरे चंद आसुओं को ग़र कोई मुस्कान में बदल दे,
मेरे कांधे पर कोई प्यार से अपने हाथ रख दे,
एक लम्हे को जैसे तेरी ही ममता झलक उठती है माँ,
तुमसे दूर हो कर भी मैं आज तुम सी हो गई हूँ माँ...
#SwetaBarnwal