Tuesday 23 July 2019

मइया अम्बे... 🙏🏼

मेरी मइया बड़ी प्यारी
उनकी सुरत बड़ी न्यारी
करे जो शेर की सवारी
जिनकी महिमा बड़ी भारी
हो मइया अम्बे

सबका बेड़ा पार लगा दे
दुखियों के जो दुख हर ले
भक्ति भाव से जो कोई ध्यावे
उसके हर दर्द दूर हो जावे
हो मइया अम्बे

बांझन की झोली तु भर दे
अंधन को ज्योति तु दे दे
जो स्त्री तेरा ध्यान लगावे
अखंड सौभाग्य का वर वो पावे
हो मइया अम्बे

निर्बल को संबल तु दे दे
अंधियारे को रौशन तु कर दे
भले बुरे का ज्ञान करादे
जीवन में खुशियाँ तु भर दे
हो मइया अम्बे

तेरी शरण जो कोई आए
रोग दोष जाके निकट ना आवे
भव सागर से पार लगा दे
तेरी महिमा कोई पार ना पावे
हो मइया अम्बे

दुष्टों का संहार करे तु
दुर्बल का उद्धार करे तु
तुझसे बड़ा ना कोई सानी
तु है जग की कल्याणी
हो मइया अम्बे

मेरी मइया बड़ी प्यारी
उनकी सुरत बड़ी न्यारी
करे जो शेर की सवारी
जिनकी महिमा बड़ी भारी
हो मइया अम्बे

#SwetaBarnwal 

Monday 22 July 2019

सावन...

लौटा दे कोई मुझको मेरे बचपन का सावन
वो मइया की लोरी वो बाबा की गोदी
वो पोखर वो बारिश की ताल तलइया
लौटा दे कोई मुझको वो मेरे घर का आँगन

खेलूं मैं फ़िर से वो बुढ़िया कबड्डी
सखियों के संग फ़िर से दौड़ लगाऊँ
बारिश के पानी में अपनी भी नाव दौड़ेगी
हर ओर होगा खुशियों का आलम

लौटा दे कोई मुझको मेरे बचपन का सावन

खूबसूरत सपनों से भरी हो अपनी ज़िंदगी
सुनुं फिर से वही राजा रानी की कहानी
सुना के सुलाए जिसे दादी नानी की ज़ुबानी
दोहराऊँ फ़िर से वही हसीन ज़िंदगानी

लौटा दे कोई मुझको मेरे बचपन का सावन

हर रोज खलिहान में लगे दोस्तों का डेरा
ना खोने का डर हो ना हो किसी गम ने घेरा
बांध पतंग मे डोर हवा संग बातें करते
गिरते संभलते यूँ ही अपनी मस्ती में जीते

लौटा दे कोई मुझको मेरे बचपन का सावन

बाग में झूलुं डाल आम के पेड़ों पे झूले
कहकहे लगाऊँ सुन के कोयल के बोल सुरीले
मइया निढाल हो अपनी ले के बलैय्या
दुआओं से सबके सवारूं अपना जीवन

लौटा दे कोई मुझको मेरे बचपन का सावन

बारिश के पानी में छपा छैय्या करना
नदी की धार के संग दूर जा निकलना
सर्दी लगने पर माँ की डांट के साथ तेल की मालिश
मिटा दे ज़िंदगी की हर दर्द और तपिश
छुप छुप कर मोहल्ले की औरतों की बातें सुनना
अपनी प्रशंसा होने पर खिलखिला कर हंसना

लौटा दे कोई मुझको मेरे बचपन का सावन...

वो झिलमिल सितारों का आँगन
वो रिमझिम बरसता सावन
वो मइया का प्यार भरा आँचल
वो बाबा की प्यार भरी डांट
वो भाई बहनों की अटखेलियाँ
वो जादू की झप्पी वो सखी सहेलियाँ

लौटा दे कोई मुझको मेरे बचपन का सावन...


#SwetaBarnwal



Saturday 20 July 2019

औरत...

बहुत जी लिया अबला बन कर
अब ना कोई अत्याचार सहुंगी
भर कर क्रोध की अग्नि इस सीने में
अब अपनी बातों से मैं अंगार भरूँगी
बंद करो ये कहना कि
महाभारत की वजह द्रौपदी थी
सच तो ये था कि
युधिष्ठिर की अय्याशी ने उसे लाचार किया
पांच पतियों की पत्नी हो कर भी
भरी सभा मे लुट रही थी वो
बहुत डाल लिए सच पर पर्दा
अब मैं सच्चाई की आवाज़ बनूंगी
लूटती आई है सदियों से ये औरतें
लक्ष्मी सरस्वती की इस धरा पर
द्रौपदी का चीरहरण लिखूंगी
बहुत सह लिया जुल्म ओ सितम
अब मेरी कलम हुंकार भरेगी
पुत्र की कामना मे कोख में मार डालते हैं पुत्री को
इस अन्याय के विरुद्ध
अब एक औज़ार बनूंगी
बेटियाँ घर से भाग जाती है तो
बाप की पगड़ी उछल जाती है
और जब बेटा
किसी के घर की इज़्ज़त लूट ले जाता है तो
ख़ामोश रह जाते हैं लोग
ऐसे दोगले समाज और न्याय के ठेकेदारों के लिए
एक सवाल बनूंगी
नही देनी अब कोई अग्नि परीक्षा
ना शतरंज पे बिछी बिसात बनूंगी
नहीं रहूंगी अब चुप ना ही अन्याय सहुंगी
पड़ी जरूरत अगर कभी तो
दुर्गा बन दुष्टों का संहार करूंगी...


#SwetaBarnwal 

Sunday 7 July 2019

अब मैं अपने अंदाज़ में जीने लगी हूँ...

ऐसा नहीं था कि मैं उससे प्यार नहीं करती थी और ऐसा भी नहीं था कि मैं उसके बिना जी नहीं सकती. शादी के २५ सालों के दौरान हमारा रिश्ता ठंढे बस्ते में चला गया था. बीतते वक़्त के साथ हम एक दूसरे की मोहब्बत तो नहीं, हाँ शायद आदत बन कर रह गए थे. हम दोनों को ही एक दूसरे के जज़्बातों की परवाह नहीं रह गई थी. उसने कभी मेरी जिम्मेदारियों का बोझ नहीं उठाया और ना ही मैं कभी उस पर बोझ बन कर रहना चाहती थी. हाँ, उन्हें हमारे बच्चों से बहुत प्यार था, शायद यही एक वजह थी जो हमारे वैवाहिक रिश्ते को इतने सालों तक ढोते रही और हमे एक सूत्र में बांधे रखा.
चरित्र मे उसके कोई खोट ना था पर अपनी पत्नी यानि की मुझपर विश्वास रत्ती भर भी ना था. बहुत चाहा मैंने कि उसका ये मुझ पर अविश्वास ख़त्म हो जाए पर वक़्त के साथ ये परवान चढ़ता गया. उसमें शायद कोई ऐसी बुराई नहीं थी जो हमारे रिश्ते में आ रहे दरार की वजह बनती है पर उसका अविश्वास, अनर्गल आरोप, हर बात पर मेरे चरित्र का हनन इन सब ने मिल कर हमारे रिश्ते को निगल लिया. उसने ख्वाब में भी कभी मेरा ऐतबार नहीं किया. वो अपने स्त्री पुरुष हर तरह के दोस्त और सहकर्मियों का ज़िक्र किया करता था मुझसे. इस तरह वो अपनी ईमानदारी का सबूत दिया करता था. पर कभी भूले से भी मेरे मुह से किसी पुरुष मित्र या सहकर्मी का नाम निकल जाए तो शक़ की घंटी तुरंत उसके दिमाग में बजने लगती थी. वैसे इसमे उसकी कोई गलती नहीं थी. गलती तो इस समाज और उसके घटिया सोच की है जो पहले तो औरतों को घर की दहलीज़ पार करने नहीं देती थी और आज जब औरतों ने दुनिया में अपना मकाम बना लिया है तब भी उसके पैरों मे अनजानी सी बेड़ियाँ हर वक़्त रहती है बंधी. बची खुची कसर उन्हें मिली परवरिश ने पूरी कर दी. उसके माँ बाप ने कभी मुझे बहु का मान नहीं दिया, हर वक़्त अपनी जली कटी और अश्लील शब्दों से मेरे किरदार और चरित्र का हनन करते.
इस रिश्ते में घुटन सी होने लगी थी, पर कुछ था जो शायद अब भी शेष था हमारे बीच और वो था सबकुछ ठीक होने की उम्मीद. मेरी इन झंझावतों से भरी ज़िंदगी में ऐसा नहीं था कि मुझे कोई चाहने वाला ना मिला था, पर मुझे अपनी हदें मालूम थी और ये भी समझती थी कि हर मर्द एक जैसे ही होते हैं. औरत सबके लिए सिर्फ़ मन बहलाने का जरिया मात्र है. पर हाँ इस मतलबी दुनिया में कुछ बहुत अच्छे दोस्त भी मिले थे जिसने मुझे जीना सिखाया, ख़ुद से लड़ना सिखाया, अपने अंदर के तूफानों को दबाना सिखाया. नहीं नहीं इन दोस्तों के बारे में मैंने उसे कभी कुछ नहीं बताया. अतीत में किए गए ईमानदारी के परिणाम देख अब उसे दुहराने की गलती क्यूँ करती भला. मैंने कभी कुछ ना छुपाया, जो भी था अतीत मेरा, भला या बुरा हर किस्सा सुनाया बदले में सिवाय गाली के कुछ ना मिला. हर वक़्त मेरा मोबाइल खंगालना, मैसेज देखना, छोटी छोटी बातों पर हंगामा करना, मेरी इज़्ज़त को तार तार करना, इसलिए निकाल फेंका अपने अंदर के ईमानदारी के किड़े को.
सच कहूँ तो मुझे मेरे अस्तित्व की पहचान मेरे उन्हीं दोस्तों ने कराई. मेरे अंदर मृत पड़े एहसास को उनलोगों ने ही जगाया. मैं अब अपने आप को संवारने लगी, अपने तरीकों और शौख को बदलने लगी अब मैं ख़ुद के लिए भी जीने लगी और वो कहते हैं तुम्हारे तो कई यार हैं, कई चाहने वाले हैं, तुम्हें मेरी क्या जरूरत. तुम्हारी तो हर रात रंगीन होती होगी और मैं मुस्कुरा कर सहमति मे हाँ बोल जाती हूँ सिर्फ़ इसलिए कि अब मैं अपने अंदाज़ में जीने लगी हूँ. कब तक सफ़ाई देती रहूँ अनकहे इल्ज़ामों का कि अब मैं हर ज़हर पीने लगी हूँ...

क्या इस स्त्री ने सही किया, अपना जवाब comment box मे जरुर दें...

(एक स्त्री के वर्चस्व की लड़ाई)

#SwetaBarnwal 

ना जाने क्यूँ...

ना जाने क्यूँ...!
एक ख़ामोशी सी छा गई है हमारे बीच
वजह क्या है शायद नही पता
या फिर यूँ कहो कि सबकुछ पता है
ठीक करना चाहूँ सब कुछ
पर शायद होनी को मंज़ूर कुछ और है
मौन साध रखा है हम दोनों ने ही
या फिर नाराज़गी का कोई आलम है
ना जाने क्यूँ अब वो सुहानी शाम नहीं होती...

तुम पूछने आओ मेरी उदासी का सबब
अब वैसी कोई बात नहीं होती
क्यूँ परेशान हो प्रिये कुछ कह भी दो
खींच लो कभी मुझे अपनी बाहों में
सहला जाओ कभी अपनी प्यारी बातों से
मेरे नासूर हो रहे ज़ख्मों को जो ज़िन्दगी ने दिए
ना जाने क्यूँ अब वैसी मुलाकात नहीं होती...

आज भी जब मैं अकेली होती हूँ
तेरी यादों का लम्हा मेरे साथ होता है
गुदगुदाती है हवाएं भी
यूँ लगता है जैसे एहसास भर लाई हो तुम्हारा
उगते चाँद को देख मुस्कुरा लेती हूँ
तेरे साथ बिताए पल को जी लिया करती हूँ
यादों में तुम मेरे हर पल होते हो
पर ना जाने क्यूँ अब तुम साथ नहीं होते
ना जाने क्यूँ अब वो हसीन रात नहीं होती...

ना जाने क्यूँ अब वो नज़र नहीं होती
जी भर कर देखा करती थी जो मुझे
चेहरे पर ना चाह कर भी उदासी छा जाती है
लाख छुपाऊँ पर ये आँसू दगा दे जाते हैं
हंसना चाहूँ पर हंस भी ना पाऊँ
कभी ना सोचा था ऐसे मोड़ आएंगे
रोना भी जरूरी होगा और आंसू छुपाने भी होंगे
ना जाने क्यूँ अब वो बरसात नहीं होती...

घुट घुट कर जी रही हूँ ज़िंदगी मैं अपनी
और पी रही हूँ अपनी ही उदासी को घूंट घूंट में
आइने में देखूं तो ख़ुद को ख़ुद से बेज़ार पाऊं
बहुत ही घुटन सी महसूस होती है इस सन्नाटे में
अपनी ही सांसों की आवाज़ सुनाई दे जाती है इस वीराने में
दिल को चीर कर रख देती है ये रात की ख़ामोशी
ना जाने क्यूँ अब वो तारों वाली रात नहीं होती...

#SwetaBarnwal 

Saturday 6 July 2019

मत रो...

ऐ मन मत रो
ना कर आँसुओं को बर्बाद इस कदर
मान ले नियति जो भी मिला
मत कर कोई शिकवा गिला
ये वक़्त का दरिया है
बह जाएगा
कौन जाने कब कहां
जो छिना वो मिल जाएगा
या फिर कभी कहीं
कुछ मिल कर भी छिन जाएगा
ये वक़्त तो चलता जाएगा
तु हँसता जा या रोता जा
जीवन की बस यही रित है
कुछ मिल जाए
कभी छिन जाए
तु इसको हंस कर जीता जा
यही है राहें इस जग की
तु इसको गले लगाता जा
कब तक रोओगे रे पगले
कब तक अश्क बहाओगे
कब तक दुख का रोना रोकर
दिल को यूँ बहलाओगे
जो हुआ उसे तु भूल भी जा
बस आगे की सुध लेता जा
माना जीवन राहें वीरान थी तेरी
पर कब तक इसका शोक मनाएगा
तोड़ के सारे गम के बादल
ख़ुद को अंगार बनाता जा
कुछ भी नया नहीं तेरे लिए अब
इससे तू अब जूझ जरा, जूझ जरा
भर कर दिल में हौसला अपने
नई उम्मीदों के किरण संग चल
हो सकता है मिल जाए तुझे कोई नया जहां
तप कर और तपा ख़ुद को
बन कर फौलाद सह जा हर ताप
मत सोच जो आज ना मिला तुझे
वो कल भी ना मिलेगा तुझको
खोने पाने की आस में
ख़ुद को ना बर्बाद कर
जो है बस आज है
कल को किसने देखा है
जी ले तु इस पल को
ये पल ना लौट के आएगा कल
ना छोड़ कभी तु सुख की आस
ना जाने कब बुझ जाएगी
यूँ ही जीवन की शमा
कभी तो मिलेगा तुझको
एक खूबसूरत सा जहां
ऐ मन मत रो
ना कर आँसुओं को बर्बाद इस कदर...

#SwetaBarnwal





वहम...

ये तुम थे या फिर मुझे कोई वहम हुआ
यूँ लगा जैसे आज फ़िर तूने मुझे छुआ...

आज फ़िर लगा जैसे इन सर्द हवाओं के साथ
कोई छू कर गुज़रा हो मुझे अभी अभी
ये एहसास लगा कुछ जाना पहचाना सा
यादों में रहता था जिसका आना जाना

ये तुम थे या फिर मुझे कोई वहम हुआ

ये हवा कोई खूबसूरत धुन सुना गई ऐसे
मधुर मिश्री सी घोल गई कानों में जैसे
मुद्दतों बाद आज फ़िर से वही मदहोशी छाई
लगता है जैसे फ़िर से खुशियाँ लौट आई

ये तुम थे या फिर मुझे कोई वहम हुआ
यूँ लगा जैसे आज फ़िर तूने मुझे छुआ...

मेरे दिल में कोई जादू सा जगा गया
तेरे होने का जैसे वो एहसास करा गया
कह दो अपने ख्यालों से यूँ ना मुझे तड़पाये
तेरी तरह वो भी मुझसे दूर चला जाए
अरसा हो गया तुम लौट कर कभी आए नही
और ये हवा हर बार तेरा ख़्याल ले आती है
आज भी खोई थी मैं अपनी ही उलझनों में
और ये हवा एकबार फिर वही प्यार के धुन सुना गई

ये तुम थे या फिर मुझे कोई वहम हुआ
यूँ लगा जैसे आज फ़िर तूने मुझे छुआ...

#SwetaBarnwal



Wednesday 3 July 2019

याद आता है... बचपन...

याद आता है बहुत अपना वो प्यारा सा बचपन

वो माँ की गोद वो पिता का दुलार
वो भाई बहन से लड़ना झगड़ना
वो हंसी ठिठोली वो रूठना मनाना
दोस्तों की टोली मिलकर धूम मचाना

याद आता है बहुत अपना वो प्यारा सा बचपन

वो गर्मी की छुट्टियों में नानी के घर जाना
रात को राजा रानी और पारियों की कहानी
माँ की मार से बच दादी की गोद में छुपना
भूत प्रेत के डर से राम नाम जपना

याद आता है बहुत अपना वो प्यारा सा बचपन

खेल खेल में ज़िंदगी के गुर सीख लेते थे
खुब गिरते थे फ़िर भी कभी ना रुकते थे
माँ की साड़ी पहन दुल्हन बन जाना
ख़ुद को आईने मे सौ बार निहारना

याद आता है बहुत अपना वो प्यारा सा बचपन

कू कू कर कोयल को चिढ़ाते थे
थक जाते थे पर हार ना मानते थे
आम के पेड़ों पर वो झूला झूलना
गर्मी की दुपहरी में भी दौड़ लगाना

याद आता है बहुत अपना वो प्यारा सा बचपन

रात को खुले आसमां के नीचे सब एक साथ सोते थे
कभी टूटते तारे को देखते थे तो कभी मुराद मांगते थे
उड़ते हवाई जहाज की रोशनी के साथ सपनों मे खोना
कभी जुगनूओं के पीछे भागना कभी उसे मुट्ठी में बांधना

याद आता है बहुत अपना वो प्यारा सा बचपन

याद आती है बहुत वो गुड्डे गुड़िया की शादी
वो पल वो ज़िंदगी वो आसमान में उड़ने की आज़ादी
वो गिल्ली डंडा वो चूड़ी, कंचे, गोटी की तीज़ोरी
सीख लेते थे लूडो से ज़िन्दगी के उतार चढ़ाव
वो चढ़ना गिरना फ़िर गिर के संभलना

याद आता है बहुत अपना वो प्यारा सा बचपन

#SwetaBarnwal 

ऐ विधाता...!

 ऐ विधाता...! ना जाने तू कैसे खेल खिलाता है...  किसी पे अपना सारा प्यार लुटाते हो, और किसी को जीवन भर तरसाते हो,  कोई लाखों की किस्मत का माल...