माँ अब मैं सब कुछ सीख गई,
क्यूंकि अब मैं बेटी से बहु बन गई...
सुबह सवेरे उठना सीख गई,
आँख खुलते ही सबको चाय देना सीख गई,
गोल गोल रोटियां बनाना सीख गई
जली हुई रोटियां खाना सीख गई...
माँ अब मैं सब कुछ सीख गई,
क्यूंकि अब मैं बेटी से बहु बन गई...
अब कच्ची पक्की सब्जियां नहीं बनाती,
कुशल रसोइए का हुनर सीख गई,
आटे दाल का भाव करना सीख गई,
दुख में भी मैं मुस्कुराना सीख गई,
माँ अब मैं सब कुछ सीख गई,
क्यूंकि अब मैं बेटी से बहु बन गई...
सास ससुर के ताने सहना सीख गई,
अकेले में सुबक कर रोना सीख गई,
पति की घुडकियां सहना सीख गई,
कि मैं ज़िन्दगी जीने का हुनर सीख गई...
माँ अब मैं सब कुछ सीख गई,
क्यूंकि अब मैं बेटी से बहु बन गई...
कम पैसों में भी घर चलाना सीख गई,
अपने सपनों को मैं कुचलना सीख गई,
तुम सबको भी मैं भूलना सीख गई,
कि अपने ही वज़ूद से मुंह फेरना सीख गई...
माँ अब मैं सब कुछ सीख गई,
क्यूंकि अब मैं बेटी से बहु बन गई...
अपने दर्द को मैं छुपाना सीख गई,
बच्चों की खुशी में ही जीना सीख गई,
उनके सपनों को उड़ान देना सीख गई,
ऐ माँ तेरी ये बेटी आज ममता लुटाना सीख गई...
माँ अब मैं सब कुछ सीख गई,
क्यूंकि अब मैं बेटी से बहु बन गई...
आँसुओं को आँखों में छुपाना सीख गई
लगी जो चोट तो ख़ुद मरहम लगाना सीख गई
बेपरवाह जीने वाली सबकी परवाह करना सीख गई
ख़ुद से पहले औरों का ख़्याल रखना सीख गई
माँ अब मैं सब कुछ सीख गई,
क्यूंकि अब मैं बेटी से बहु बन गई...
हर बात में सवाल करने वाली
अब मौन रहना सीख गई
छोटी सी बात पे आहत होने वाली
दुनिया के दंश सहना सीख गई
सबकी ख़ुशी मे ख़ुद की ख़ुशी तलाशना सीख गई
बहु बनते ही मैं सारी दुनियादारी सीख गई...
माँ अब मैं सब कुछ सीख गई,
क्यूंकि अब मैं बेटी से बहु बन गई...
कभी पत्नी बन गई तो कभी माँ बन गई,
तेरी बेटी की अब ये नई पहचान बन गई,
क्या सही और क्या गलत ये सोचना भूल गई,
बस जो मिला उसी मे जीना सीख गई...
माँ अब मैं सब कुछ सीख गई,
क्यूंकि अब मैं बेटी से बहु बन गई...
#SwetaBarnwal