Saturday 26 February 2022

आज की स्त्री...

 क्यूँ बेबस और लाचार है,

क्यूँ सहमी और सकुचाई है,

क्यूँ सहती हर बात है,

क्यूँ उजड़े से तेरे हालात हैं 

आज की स्त्री...


क्यूँ होठों पर ख़ामोशी है,

क्यूँ चेहरे पर उदासी है,

क्यूँ जुल्मों को सहती है,

क्यूँ नहीं आवाज उठाती है,

आज की स्त्री...


क्यूँ तोड़ नहीं देती उन उंगलियों को,

जो चरित्र पे प्रश्न उठाते हैं,

जब कोई मन को छलता है,

क्यूँ प्रतिकार नहीं करती, 

आज की स्त्री...


ये वही धरा है जहां लक्ष्मीबाई ने हुंकार भरी,

रण चंडी बन दुष्टों का संहार किया,

ये वही धरा है जहां ख़ुद माँ दुर्गा ने काली का स्वरुप धरा,

फ़िर क्यूँ चुपचाप खड़ी है,

आज की स्त्री...


ये वही धरा है जहां लता मंगेशकर को स्वर कोकिला का सम्मान मिला,

ये वही धरा है जहां अहिल्या बाई होल्कर ने नारी उत्थान के लिए जंग लड़ा,

फ़िर क्यूँ भयभीत है,

आज भी स्त्री...


कर याद ईन वीरांगनाओं को,

प्रबल कर अपनी इक्षा शक्ति,

तोड़ दे हर जंजीरों को

और दिखा दुनिया को,

क्या कर सकती है,

आज की स्त्री...


#SWETABARNWAL 

No comments:

ऐ विधाता...!

 ऐ विधाता...! ना जाने तू कैसे खेल खिलाता है...  किसी पे अपना सारा प्यार लुटाते हो, और किसी को जीवन भर तरसाते हो,  कोई लाखों की किस्मत का माल...